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आप्तवाणी-७
में यों बिस्तर बिछा देते थे। फिर गाड़ी चलने लगे तब सब कहते, 'फिर मिलेंगे, अंबालाल चाचा! आना।' फिर गाड़ी चल पड़े तब वे सभी नहीं दिखते थे यानी बड़ौदा से अभी बंधे नहीं और मुंबई से मुक्त हो गए, तो अब किसमें रहना है? मोक्ष में रहना है। यानी ज्ञान होने से पहले मैं इस तरह से मोक्ष में रहता था। यहाँ से छूटे और वहाँ पर अभी तक बंधे नहीं, वह कौन सा काल कहलाएगा? वह मुक्ति ही कहलाएगी न! तो हम ऐसा फायदा उठा लेते थे। और लोग क्या करते हैं कि मुंबई छोड़ा, फिर भी मुंबई साथ में ले जाता है और बड़ौदा आने से पहले ही अंतर में बड़ौदा को डाल देता है, इसलिए उलझता ही रहता है। और मैं तो नक्की ही कर देता था कि मुंबई से मुक्त हो गए, बड़ौदा अभी तक आया नहीं, अतः भीतर मुक्त। बीच का काल वह मोक्ष का काल! आसान रास्ता है न? हमें ज्ञान नहीं हुआ था उससे पहले भीतर तरह-तरह के ऐसे विचार स्फुरित होते थे! यह एक अच्छा स्फुरण कहलाएगा न!
इसी प्रकार तू सोते समय, खुद के रूम में पलंग पर सो जाता है, तो कोई तेरे पलंग में घुस जाता है? नहीं! तो उस घड़ी तू यदि कहे कि घर से, सभी से मुक्त हुए और पलंग से बंधे नहीं हैं। क्योंकि पलंग थोड़े ही बांधता है हमें? यदि मुक्त दशा बरते, तो वह क्या बुरा है?