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भोगवटा, लक्ष्मी का
कमाई में, चुकता किए जीवन
दादाश्री : धोराजी से यहाँ कलकत्ता में आप किसलिए आए ?
प्रश्नकर्ता : जीवन निर्वाह के लिए ।
दादाश्री : जीवन निर्वाह तो जीव मात्र कर ही रहा है। कुत्ते, बिल्ली, सभी अपने - अपने गाँव में ही रहकर जीवन निर्वाह करते हैं। ये मथुरा के बंदर होते हैं न, वे भी वहीं के वहीं, किसी से भी चने लेकर अपना निर्वाह कर ही लेते हैं। वे कहीं दूसरे शहर में नहीं जाते, मथुरा में ही रहते हैं । और लोग तो सभी जगह जाते हैं !
प्रश्नकर्ता : लोभ दृष्टि है न, इसलिए ।
दादाश्री : हाँ, वह लोभ परेशान करता है, निर्वाह परेशान नहीं करता। यह निर्वाह परेशान करे ऐसा है ही नहीं । निर्वाह तो, वह जहाँ पर हो वहाँ पर उसे मिल ही जाएगा। मनुष्यत्व तो महान सिद्धि है। उसे हर एक चीज़ मिल आती है। लेकिन ये लोभ के कारण भटकते रहते हैं । 'यहाँ से लूँ या वहाँ से लूँ, यहाँ से लूँ या वहाँ से लूँ' करता रहता है। यहाँ कलकत्ता तक आए फिर भी कोई ऐसा नहीं कहता कि 'मैं संतुष्ट होकर बैठा हूँ !'
प्रश्नकर्ता :
संतोष रहे तो फिर दुःख कैसा?
दादाश्री : नहीं-नहीं, संतोष की बात नहीं है। कमाने के