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[१०] फ्रैक्चर हो, तभी से आदि जुड़ने की!
हिसाब चुकाते हुए, स्वपरिणति न चुके सिर्फ 'ज्ञानीपुरुष' को ही किसी ऊपरी (बॉस, वरिष्ठ मालिक) की ज़रूरत नहीं है। उसका क्या कारण है? उनमें स्वच्छंद है ही नहीं। निरंतर स्वपरिणति में रहते हैं। इसलिए उन्हें किसी ऊपरी की ज़रूरत नहीं है। इंसान को ऊपरी की ज़रूरत कब तक है? जब तक उससे भूल हो, तब तक ऊपरी की ज़रूरत है। जब भूल नहीं रहे उसके बाद ऊपरी नहीं रहता। इस ‘अंबालाल' की भूल हुई होगी, लेकिन ज्ञानी के रूप में हमारी भूल नहीं होती।
यह जो पैर टूट गया है, वह अंबालाल की भूल का परिणाम है, हमारे इस ज्ञान के परिणामस्वरूप नहीं। जबकि लोग ऐसा कहते हैं कि, 'आपको ऐसा कैसे हो सकता है?' मैंने कहा कि, 'सबकुछ हो सकता है। लेकिन यह अंबालाल का परिणाम है, भगवान का परिणाम नहीं है यह, और भगवान को ऐसा होता भी नहीं।'
कृष्ण भगवान भी ऐसे सो रहे थे, तब उन्हें पैर पर बाण लगा था। कृष्ण भगवान वासुदेव भगवान थे, यह परिणाम अलग है और तीर लगा वह परिणाम अलग है। दोनों परिणाम अलग हैं। लोग उस पर से परिणाम समझने की भूल कर बैठते हैं। कृष्ण भगवान, वे तो भगवान ही हैं। भले ही तीर लगा या भले ही कुछ भी हुआ हो, लेकिन वे भगवान ही हैं। क्योंकि वे स्वपरिणति में थे और नैष्ठिक ब्रह्मचारी थे!