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फ्रैक्चर हो, तभी से आदि जुड़ने की! (१०)
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जाएँगे न! और यह पैर छोटा हो जाए तो भी मुझे हर्ज नहीं, मुझे चलने की बहुत ज़रूरत नहीं पड़ती। ऐसा है न, हमें कहीं इसे जिंदा रखने की इच्छा भी नहीं है। हमें तो, यह देह रहे या न रहे, उसकी भी कुछ नहीं पड़ी है। मरना है ऐसा भी नहीं है, जीना है ऐसा भी नहीं है। अपने आप ही देह जब छूटेगा तो छूट जाएगा यहाँ से! लोग तो किसलिए यह सब करते हैं? कि ज़्यादा जीने के लिए सभी मतलबी-प्रपंच करते हैं कि, 'डॉक्टर साहब मुझे ऐसा करो, मुझे अच्छा करो, मुझे बचाओ।' हमें तो, जो सहज रूप से हो जाए न, वह अच्छा। ये सभी डॉक्टर यहाँ पर आकर यह सब कर जाते हैं। डॉक्टर की ऐसी इच्छा ज़रूर है कि इन्हें यहाँ से 'जाने' नहीं देना है, अभी भी पाँच-दस साल
और रहें तो अच्छा। जगत् के काम आएँगे। इसलिए ये सभी डॉक्टर सहारा देना चाहते हैं। बाकी, अब चौहत्तर वर्ष तो हो गए!
पैर टूटा या जुड़ रहा है? जब मेरा यह पैर टूटा, तब जगत् के लोग इसे 'पैर टूट गया' ऐसा कहते हैं। तब मैं क्या कहता हूँ कि, 'नहीं, यह पैर तो जुड़ रहा है।' पैर टूटा था, वह तो बहुत पहले टूटा था! यह कुछ नया नहीं है। लोग मुझे कहते हैं, 'आपके पैर में फ्रैक्चर हो गया?' अरे, नहीं, जो टूटा था, वह तो उस दिन टूटा था, अब तो यह जुड़ रहा है। अभी यह रूपक में आया है, वह तो जुड़ने की शुरूआत हुई है और यह जो फ्रैक्चर हुआ वह तो संधिस्थान है। किसका संधिस्थान? जुड़ने का संधिस्थान। फ्रैक्चर हुआ उसी मिनट से अंदर जुड़ना शुरू हो गया। रूपक में टूटे, तभी से जुड़ने की शुरूआत हो जाती है और वास्तव में फ्रैक्चर कौन-से मिनट से होना शुरू हुआ था, वह भी हम जानते हैं। इस बात में जगत् गहरा नहीं उतर सकता न! 'जुड़ने की शुरूआत' को ही लोग कहते हैं कि, 'यह फ्रैक्चर हुआ।' जबकि हम कहते हैं कि, 'अरे, यह तो जुड़ना शुरू हुआ है, उसे किसलिए फ्रैक्चर