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पाप-पुण्य की परिभाषा (११)
उसमें किसी को दोष कैसे दिया जा सकता है?
कोई चीज़ ऐसी नहीं कि जो इन पुण्यशालियों को नहीं मिले, लेकिन ऐसा पूरा पुण्य नहीं लाए हैं इसलिए। नहीं तो हर एक चीज़, जैसी चाहिए वैसी मिले, ऐसा है, लेकिन जब तक लोग लौकिक ज्ञान में पड़े हुए हैं, तब तक कभी भी कोई चीज़ प्राप्त नहीं हो पाएगी। एक तो दिमाग़ से ज़रा गरम होता है, उसमें फिर उसे यदि ऐसा ज्ञान मिले कि 'बूधे नार पांसरी । ' ( पत्नी को धमकाकर मारपीटकर ही वश में रखा जा सकता है) तब फिर उसे जो चाहिए था, वही मिल गया ! ऐसा ज्ञान मिले तो वह ज्ञान उसे फल देगा या नहीं देगा? फिर क्या होगा? जिस स्त्री के कोख से तीर्थंकर जन्मे, उस स्त्री की दशा तो देखो तुमने कैसी की? कितना अन्याय है? क्योंकि जिस स्त्री जाति की कोख से चौबीस तीर्थंकर जन्मे, बारह चक्रवर्तियों जन्मे, वासुदेव जन्मे, वहाँ पर भी ऐसा किया? भले ही आपको कड़वा अनुभव हुआ लेकिन उसके लिए स्त्री जाति को क्यों भला-बुरा कहना? आप बारह रुपये डज़न के आम लाओ लेकिन वे खट्टे निकलते हैं और तीन रुपये डज़नवाले आम बहुत मीठे निकलते हैं। यानी कई बार चीज़ उसकी क़ीमत पर आधारित नहीं होती, आपके पुण्य पर आधारित होती हैं। आपका पुण्य यदि ज़ोर लगाए न, तो आम बहुत मीठा निकलेगा ! और यह जो खट्टा निकला, उसमें आपके पुण्य ने ज़ोर नहीं लगाया, उसमें किसी को दोष कैसे दिया जा सकता है?
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यानी यह तो पुण्य की कमी है, और क्या है यह? बड़ा भाई जायदाद नहीं दे रहा हो तो क्या वह बड़े भाई का दोष है? अपने पुण्य में कमी है, उसमें दोष किसी का भी नहीं है यह तो, वह पुण्य को तो सुधारता नहीं और बड़े भाई के साथ निरे पाप बाँधता है! फिर पाप के दोने इकट्ठे होते हैं।
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और इस तरह पुण्य बँधते हैं
प्रश्नकर्ता : पुण्य किस तरह सुधरते हैं?