________________
निष्क्लुशितता, ही समाधि है (९)
ही सामनेवाले को भी दुःख होता होगा, ऐसा तो हम समझ सकते हैं न? प्रत्येक बात में इसी प्रकार आपको ऐसे विचार आने चाहिए। लेकिन आजकल तो यह मानवता विस्मृत हो गई है, गुम हो गई है न! इसी के ये दुःख हैं सारे ! लोग तो सिर्फ अपने स्वार्थ में ही पड़े हैं। वह मानवता नहीं कहलाती ।
१६१
फिर मानवता से भी आगे, ऐसा 'सुपर ह्यूमन' किसे कहेंगे? आप दस बार किसी व्यक्ति का नुकसान करो, फिर भी, जब आपको ज़रूरत हो तो उस समय वह व्यक्ति आपकी हेल्प करे ! आप फिर से उसका नुकसान करो, फिर भी, जब आपको काम हो तो उस घड़ी वह आपकी हेल्प करे । उसका स्वभाव ही हेल्प करने का है। तब समझ जाना है कि यह व्यक्ति 'सुपर ह्यूमन' है । ऐसे लोग तो कभी-कभार ही होते हैं। अभी तो ऐसे लोग मिलते ही नहीं न! क्योंकि लाख लोगों में एकाध ऐसा होता है, ऐसा अनुपात हो गया है।
प्रश्नकर्ता : हम जानते हैं कि किसी का दिल नहीं दुखे इस प्रकार से जीना है, मानवता के वे सभी धर्म जानते हैं ।
दादाश्री : ये सब तो मानवता के धर्म हैं, लेकिन यदि स्वाभाविक धर्म जान लें तो फिर हमेशा सुख बर्तेगा। मानव धर्म में कैसा है ? हम सामनेवाले को सुख दें तो हमें सुख मिलता रहे। यदि हम सुख देने का व्यवहार रखें तो व्यवहार में हमें सुख प्राप्त होगा और दुःख देने का व्यवहार रखें तो व्यवहार में दुःख प्राप्त होगा। इसलिए यदि सुख चाहिए तो व्यवहार में सभी को सुख दो और दुःख चाहिए तो दुःख दो।
प्रश्नकर्ता : सभी को सुख पहुँचाने की शक्ति प्राप्त हो, ऐसी प्रार्थना करनी चाहिए न ?
दादाश्री : हाँ, ऐसी प्रार्थना कर सकते हैं न !