________________
१६०
आप्तवाणी-७
हमें क्या यह सब शोभा देता है? अपने हिन्दुस्तान के मनुष्य, एकएक मनुष्य में ज़बरदस्त शक्ति हैं! लेकिन कितना उल्टा उपयोग हो रहा है! इसमें उनका भी दोष नहीं है। उन्हें उल्टा ज्ञान मिला है इसलिए उल्टे चल रहे हैं। यदि सीधा ज्ञान दिया जाए तो सीधे चलें, ऐसे हैं। आपको यह सीधा ज्ञान मिलने के बाद आपकी कितनी शक्ति बढ़ गई! दर्शन और सूझ बहुत बढ़ जाते हैं !!
...वह मानवधर्म कहलाता है प्रश्नकर्ता : इसमें मानवधर्म क्या है?
दादाश्री : किसी मनुष्य को हमारे निमित्त से दुःख न हो, अन्य जीवों की बात तो जाने दो, लेकिन सिर्फ मनुष्यों को संभाल लें कि 'मेरे निमित्त से इन्हें दुःख होना ही नहीं चाहिए,' तो वह मानव धर्म है।
वास्तव में मानव धर्म किसे कहा जाता है? यदि आप सेठ हैं और नौकर को बहुत धमका रहे हैं, उस समय आपको ऐसा विचार आना चाहिए कि, 'अगर मैं नौकर होता तो क्या होता?' इतना विचार आए तो फिर आप उसे मर्यादा में रहकर धमकाएँगे, ज़्यादा नहीं कहेंगे। यदि आप किसी का नुकसान कर रहे हों तो उस समय आपको यह विचार आना चाहिए कि 'मैं सामनेवाले का नुकसान कर रहा हूँ, लेकिन अगर कोई मेरा नुकसान करे तो क्या होगा?'
फिर किसी के पंद्रह हज़ार रुपये, सौ-सौ रुपयों के नोटों का एक बंडल हमें रास्ते में मिले, तब हमारे मन में यह विचार आना चाहिए कि 'यदि मेरे इतने रुपये खो जाएँ तो मुझे कितना दुःख होगा, तो फिर जिसके ये रुपये हैं उसे कितना दु:ख हो रहा होगा?' इसलिए हमें अख़बार में विज्ञापन देना चाहिए, कि इस विज्ञापन का खर्च देकर, सबूत देकर आपका बंडल ले जाइए। बस, इस तरह मानवता समझनी है। क्योंकि जैसे हमें दुःख होता है वैसे