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निष्क्लुशितता, ही समाधि है ( ९ )
है, अंदर बिठाऊँ या नहीं?' ये तो अधिक लोगों को बिठा लेता है और घोड़े को यों बेकार ही हाँकता रहता है और फिर ऊपर से चाबुक मारता है ! तब घोड़ा भी पिछले पैर तांगे में मारता है धड़ाक से । घोड़ा क्यों मारता है? क्योंकि भीतर से वह परेशान हो जाता है कि, ‘यह कैसा नालायक सेठ है? ! कैसा है?' वह घोड़ा क्या कहता है कि, 'तेरे यहाँ फँस गया हूँ, तेरे जैसा मालिक मिला तो मैं फँस गया हूँ !' उसे अच्छा घोड़ागाड़ीवाला मिलना चाहिए न! बेचारे घोड़े को भी महादु:ख है न! इसीलिए यह संसार परवश है न!
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दुःख धकेलने ऐसा केसा शौक ?
एक व्यक्ति से मैंने पूछा कि, 'ये सेठ लोग ड्राइवर को पीछे क्यों बिठाते हैं? ड्राइवर को तनख्वाह देते हैं । और सेठ की जगह पर ड्राइवर को बिठाते हैं?' तब कहता है कि, 'सेठ लोगों को शौक है!' मैंने कहा कि, 'ड्राइवर बनने का शौक है? सेठ लोगों को कहीं शौक होता होगा? इसका कहीं शौक होता होगा?' यदि कोई मज़दूर जैसा उससे कुचल जाए तो उसकी जोखिमदारी गाड़ी चलानेवाले की। ऐसा शौक तो कहीं होता होगा? फिर मैंने ढूँढ निकाला कि सेठ को क्या होता है? पूरे दिन मशीनरी बंद नहीं होती और मोटर चलाने बैठे तो चलाते समय आगे-आगे देखना पड़ता है न? इसलिए एकाग्रता रखनी पड़ती है। तब दूसरा सबकुछ बंद हो जाता है। गाड़ी चलाने बैठे उतने समय तक मशीनरी बंद रहती है, नहीं तो यह मशीनरी घड़ीभर भी बंद नहीं रहती । भीतर ठंडक नहीं रहती, इसलिए ये लोग ड्राइविंग करते हैं। क्या हो अब! लेकिन फिर (लपटुं पड़ गया है) आदत पड़ गई है, मशीन फिर से चलने लगती है।
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वह
लपटुं यानी कि यदि हमने बोतल के अंदर तेल डालकर ऊपर कॉर्क लगाया लेकिन बोतल ज़रा आड़ी हो, उससे पहले तो कॉर्क बाहर निकल जाता है। अपने आप ही बाहर निकल जाता