________________
१५०
आप्तवाणी-७
प्रश्नकर्ता : क्लेश की वजह से इंसान की वृत्ति थोड़ी वैराग्य की ओर जाती है।
दादाश्री : क्लेश के कारण जो वैराग्य उत्पन्न हुआ है न, वह वैराग्य तो इंसान को संसार में और अधिक गहराई में ले जाता है। उसके बजाय तो वह वैराग्य नहीं आए तो अच्छा। वैराग्य तो समझदारी सहित होना चाहिए। समझदारी सहित वैराग्य काम का है। वर्ना ये दूसरे सब वैराग्य तो काम के हैं ही नहीं। लोग साइनाइड किसलिए पीते होंगे? वैराग्य आता है उसी से न? खुद अपने आप पर से विश्वास खत्म हो जाए, तब फिर पोइजन ढूँढता है न? किसी जानवर का खुद अपने आप पर से विश्वास खत्म नहीं होता। इन मनुष्यों के सिवा अन्य जातियों को खुद पर विश्वास खत्म नहीं होता। सिर्फ मनुष्य ही बिल्कुल पामर जीव है, बुद्धि का उपयोग करते हैं इसलिए पामर हैं। इन्हें भगवान ने निराश्रित कहा है, दूसरे सभी आश्रित हैं। आश्रित को भय नहीं होता। कौए वगैरह सभी पक्षियों को है कोई दुःख? जो जंगल में घूमते हैं, सियार, वगैरह उन सभी को भी कोई दुःख नहीं है। सिर्फ जिन्होंने इन इंसानों की संगत की, ये कुत्ते, गाय, वगैरह वे सभी दुःखी होते हैं। वर्ना, ये इंसान तो मूल रूप से दुःखी हैं और जो उनकी संगत में आते हैं, वे सब भी दुःखी हो जाते हैं।
मनुष्य नासमझी की वजह से दु:खी हैं, समझ लेने गया इसलिए दु:खी है। यदि समझ लेने नहीं गया होता तो यह नासमझी खड़ी नहीं होती। ये सभी दुःख नासमझी का परिणाम है। खुद मन में ऐसा मानता है कि, 'मैंने यह समझ लिया, यह समझ लिया।' अरे, क्या समझ लिया? समझा फिर भी पत्नी के साथ झगड़ा तो मिटता नहीं। कभी पत्नी के साथ झगड़ा हो जाए तो उसका भी तुझे निकाल करना नहीं आता। पंद्रह दिनों तक तो मुँह चढ़े रहते हैं। कहेगा, 'किस तरह निकाल (निपटारा) करूँ?' जब तक उसे पत्नी के साथ हुए झगड़े का निकाल करना भी