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आप्तवाणी-७
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कैसे बिता रहे हैं, वह भी आश्चर्य है न! कितनी सारी मुश्किलों में से गुज़र जाते हैं, फिर भी शाम को सभी को शांत करके, इतने झगड़े का निपटारा करके फिर माँ सो जाती है, लेकिन जब तक घर में से क्लेश नहीं जाता तब तक भगवान का वास नहीं रहता। जब तक घर में क्लेश हो, तब तक घर में भगवान नहीं आते। अब क्लेश तो किसी को भी नहीं करना होता, लेकिन हो जाता है। उसका क्या करें? क्लेश तो किसी को भी नहीं करना होता न? लेकिन अपने आप क्लेश हो जाता है, तो क्या करें? क्लेश का मतलब आप समझे? आप अकेले स्वतंत्र रहते हो या फैमिली के साथ हो ?
प्रश्नकर्ता : भाई-बहन, मदर - फादर सभी के साथ रहता हूँ। दादाश्री : घर में, इस वातावरण में कभी किसी दिन क्लेश हो जाता होगा न?
प्रश्नकर्ता : कभी-कभार हो जाता है।
दादाश्री : फिर कौन निकाल देता है उस वातावरण में से? वह क्लेश का वातारवण घर में पूरी रात वैसे का वैसा रहता है या निकाल देते हो?
प्रश्नकर्ता : निकाल देते हैं ।
दादाश्री : किस तरह निकालते हो? लकड़ी मारकर ? इन लोगों को क्लेश का वातावरण निकालने की इच्छा है, लेकिन किससे निकालें ?
प्रश्नकर्ता: क्लेश भूल जाएँ और आनंद का वातावरण बनाएँ ।
दादाश्री : ऐसा है, पूरी लाइफ फ्रैक्चर हो चुकी है, माइन्ड फ्रैक्चर हो गए हैं, बुद्धि फ्रैक्चर हो गई है, ऐसे ज़माने में लोग क्या ढूँढते हैं? इसलिए अब फिर से माइन्ड की मज़बूती होनी चाहिए। माइन्ड की मज़बूती कब होगी? जब 'ज्ञानीपुरुष' के दर्शन