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निष्क्लुशितता, ही समाधि है (९)
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करे। सिर्फ दर्शन से ही माइन्ड की मज़बूती हो जाती है।
ये क्या एक ही प्रकार के तुबे हैं? कितने प्रकार के तुबे हैं। जितने तुबे उतनी मति। तुंडे-तुंडे मतिर्भिन्ना! उसे तुंड तो कब तक कहा जाता था कि जब तक उतनी तो सतर्कता थी कि घर में क्लेश को घुसने नहीं देता था, तब तक वे तुंड कहलाते थे! अभी तो क्लेश को घुसने देते हैं इतने भोले हैं, इसलिए तुबे कहलाए। अभी तो क्लेश घुस जाता है या नहीं? कई बाड़ लगाने पर भी घुस जाता है न? आख़िर में नाली के रास्ते से भी क्लेश घुस जाता है। दरवाजे बंद करके रखता है, फिर कुंडी लगा देता है कि घंटी बजेगी तभी दरवाज़ा खुलेगा, लेकिन फिर भी नाली के रास्ते से भी क्लेश घुस जाता है। किसलिए तुंबा कहा है? कि घर का खाते हैं, घर के कपड़े पहनते हैं, सभी कहीं चोरियाँ नहीं करते और फिर क्लेश करते हैं। घर में उत्पादन होता है और घर में ही उपयोग करते हैं। लोग ऐसे हो गए हैं!
अब क्लेश से घायल लोग, वे मन से घायल हो चुके हैं। मन से घायल हो चुके हैं, चित्त से घायल हो चुके हैं, अहंकार से घायल हो चुके हैं! इनके अहंकार ही घायल हो चुके हैं, उन्हें क्या डाँटना? इन्हें डाँटो तो आपके बोल बेकार जाएँगे। कुछ चित्त से घायल हो चुके हैं वे बेचित्त की तरह ही घूमते रहते हैं। कुछ का मन घायल हो गया हो तो वे पूरे दिन अकुलाया हुआ ही घूमता रहता है। जैसे पूरी दुनिया की अग्नि उसे खा जाने के लिए नहीं आ गई हो?
समझदारी सजाए, संसार व्यवहार वास्तव में तो इस दुनिया में क्लेश जैसी चीज़ है ही कहाँ? क्लेश यानी नासमझी। जहाँ-जहाँ पर समझदारी नहीं है वहाँ क्लेश है और जहाँ-जहाँ पर समझदारी नहीं है वहाँ दुःख है। दुःख जैसी भी कोई चीज़ है ही नहीं। दुःख, वह तो समझदारी के अभाव का दुःख है।