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आप्तवाणी-७
अच्छी भावना करते हैं, तो अपने खुद के घर के व्यक्ति, उनके लिए क्या कुछ नहीं करेंगे?
अपने यहाँ एक भाई आए थे, उनका एकलौता बेटा था वह मर गया। मैंने उसे पूछा, 'बेटे के घर पर बेटा है या नहीं?' तब कहने लगे, 'है न, अभी छोटा है, लेकिन यह मेरा बेटा तो मर गया न!' तब मैंने कहा, 'आप यहाँ से दूसरे भव में जाओगे तो वहाँ साथ में क्या आएगा?' तब कहने लगे, 'वहाँ तो सबकुछ भूल जाएँगे।' यानी बेटा गया उसकी चिंता नहीं है। यह तो नहीं भूलने की वजह से ही झंझट है! फिर मैंने कहा कि, 'मैं आपको भुलवा दूं?' तब कहा, 'हाँ, भुलवा दीजिए।' तब मैंने उसे ज्ञान दिया, फिर वह भूल गया। फिर उससे कहा कि, 'अब याद करके देखो।' तो भी याद नहीं आया।
इसलिए, ‘दादा भगवान आपको सौंपा' ऐसा बोलना। आपको विश्वास है या नहीं? सौ प्रतिशत विश्वास है या थोड़ा कच्चा है? दादा को सौंप देना न, पूरा हल आ जाएगा!
व्यवहार का मतलब ही लौकिक बेटा मर जाए तो बाप रोने लगता है। लड़के के मामा से, उसके चाचा से, उन सबसे पूछे कि, 'आप क्यों नहीं रो रहे हैं?' तब कहेंगे, ‘ऐसे रोने से कुछ होगा क्या? जो जन्म लेता है, वह मरता ही है न!' देखो न, ये लोग कुछ 'व्यवस्थित' को नहीं जानते? लेकिन आपको तो वह स्वार्थ है कि मेरा बेटा बड़ा होता तो मुझे लाभ होता, वह सब स्वार्थ है। दूसरे लोग रोने नहीं लगते
न?
प्रश्नकर्ता : अब, यदि नहीं रोएँ तो समाज में लोग वापस ऐसा कहेंगे कि इसे तो कुछ महसूस ही नहीं होता।
दादाश्री : हाँ, ऐसा भी बोलते हैं। समाज के लोग तो दोनों