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सावधान जीव, अंतिम पलों में (८)
हैं तो हमें भी रोना चाहिए । लेकिन रोए बगैर रोना है, रोना नहीं है। इस लौकिक में बाकी सब समझ में आता है, लेकिन इसमें समझ में नहीं आता । इसमें सचमुच में रोते हैं !
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इसमें भी व्यवहार, व्यवहार में है और केवल, केवल में है। सबने अपना-अपना बाँट लिया । फिर झगड़ा ही नहीं न ! यह तो, बाँटा नहीं है उसके झगड़े हैं न ! जहाँ अपना नहीं है, वहाँ लोग पकड़कर बैठे हैं, लेकिन बेचारे को समझ में नहीं आता और पकड़ लेता है, उसके कारण मार खाता है। और फिर से भार उठाता है और मार खाता है, वह अलग। अरे, तेरे सिर पर बोझ नहीं है, यह भार तो सारा घोड़े पर ही जा रहा है! लेकिन फिर भी सिर पर लेकर घूमता रहता है, ऐसा है यह जगत् ।
ऐसा है न, कि व्यवहार सारा दिखावटी है और निश्चय वास्तविक है। अब दिखावटी रकम को क्या हम खत्म कर सकते हैं? ऐसे दिखावटी रकम खत्म नहीं कर देते न? लेकिन इसमें तो दिखावटी को खत्म कर दिया, जहाँ उस दिखावटी को ही सही मान लिया है ! यानी बात को समझने की ज़रूरत है I
जब हमारे बड़े भाई गुज़र गए, उस समय हमारी भाभी उम्र में छोटी थीं। तब जो कोई आता, वह उन्हें रुलाता, जो कोई आता वह उन्हें रुलाता ! तब मुझे हुआ कि ये भाभी अधिक 'सेन्सिटिव' हैं, तो ये लोग इन बेचारी को मार डालेंगे ! इसलिए फिर मैंने बा से कहा कि, 'लोगों से आप ऐसा कहना कि आपको मेरी बहू के साथ मेरे बेटे से संबंधित कोई बातचीत नहीं करनी है।' अरे, यह क्या तूफ़ान ? अरे, इंसान होकर बंदर के घाव जैसा करते हो? आप से तो बंदर अच्छे ! बंदर तो घाव को बड़ा कर-करके मार डालते हैं! आप कह-कहकर वैसा ही कर रहे हो। तो आप में और बंदर में फर्क क्या रहा? लोगों को रुलाने के लिए आते हो या हँसाने के लिए आते हो? ये तो आश्वासन देने जाना है, उसके बजाय बेचारे को मार ही डालते