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सावधान जीव, अंतिम पलों में (८)
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कुदरत छुड़वा देती है।
प्रश्नकर्ता : जीव को शरीर के प्रति माया है न?
दादाश्री : शरीर के प्रति माया नहीं, उसे यह दूसरी माया है। इन आँखों से सबकुछ दिखता है। यह मेरा बेटा, यह मेरे बेटे का बेटा। उसकी बहुत माया है। और उसे बेटे का बेटा दिखे, 'बेटा, यहाँ आ, यहाँ आ,' करता है। जब तक उसे आँखों से दिखता है, तब तक यह सब बहुत अच्छा लगता है। हम कहें कि, 'चाचा, अभी भी माया नहीं जा रही?' तब कहेंगे कि, 'नहीं भाई, अभी तो जब तक आँखों से दिख रहा है, तब तक अच्छा है।' हम कहें, 'चाचा, ये पैर टूट गए हैं, हाथ टूट गए हैं, खाया नहीं जाता, फिर भी?' तब चाचा कहते हैं, 'नहीं, अभी जब तक आँखों से दिख रहा है, तब तक अच्छा है!' जाने की इच्छा किसी को नहीं होती।
लेकिन कुदरत का नियम ऐसा है कि किसी भी इंसान को यहाँ से ले जाया नहीं जा सकता, मरनेवाले के हस्ताक्षर के बिना उसे यहाँ से नहीं ले जाया जा सकता। लोग हस्ताक्षर करते होंगे क्या? ऐसा कहते हैं न कि, 'भगवान, यहाँ से चला जाऊँ तो अच्छा।' अब वह ऐसा क्यों बोलता है? वह आप जानते हो? भीतर कोई ऐसा दुःख होने लगे, तो फिर दुःख के मारे बोलता है कि, 'अब यह देह छूटे तो अच्छा।' उस घड़ी हस्ताक्षर कर देता है और वापस सुबह जब ठीक हो जाता है तब हम कहें कि, 'चाचा, रात को तो आप कह रहे थे न कि यहाँ से चला जाऊँ तो अच्छा।' तब वे कहते हैं कि, 'नहीं, लेकिन अब अच्छा है।' देखो! रात को हस्ताक्षर कर दिए और सुबह फिर पलट गए न चाचा? जब हस्ताक्षर कर दिए तभी से मैं समझ गया कि इनका अब दस या पंद्रह दिनों का ही मुकाम है। हस्ताक्षर के बिना तो किसी को भी नहीं ले जा सकते। ये जितने जीव मरे हैं न वे सभी हस्ताक्षर सहित मरते हैं। वर्ना ये लोग तो दावा करेंगे