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सावधान जीव, अंतिम पलों में (८)
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दादाश्री : वह पसंद है या जलेबी-लड्डू चाहिए? तू शादीशुदा है? तो क्या पत्नी तुझे डाँटती नहीं है? तो फिर तुझे क्या दुःख आ पड़ा है कि आत्महत्या करनी है?
प्रश्नकर्ता : सामाजिक और आर्थिक, दो ही दुःख हैं। तबियत अच्छी नहीं रहती।
दादाश्री : बच्चे हैं या नहीं? प्रश्नकर्ता : बच्चे हैं।
दादाश्री : वे बच्चे जब बड़े होंगे तब तेरी सेवा करेंगे, जिंदा रह न चुपचाप! वहाँ पर कुछ नहीं मिलेगा, वहाँ तो वे प्रेत भी बेचारे बहुत दुःखी हो गए हैं! मुझे मिलते हैं कुछ प्रेत, जिन्होंने आत्महत्या की थी! बेचारों का शरीर नहीं होता, भूख लगे तब उन्हें किसी के शरीर में घुस जाना पड़ता है। यहाँ तो चैन से खाना, पीना और पत्नी के साथ घूमना न!
प्रश्नकर्ता : लेकिन खाने-पीने के लिए आर्थिक परिस्थिति भी चाहिए न?
दादाश्री : अरे, ज़रा मेहनत कर। आज तुझे पूरा रास्ता बता देंगे। फिर धीरे-धीरे तेरा सभी कुछ सुधर जाएगा। एकदम से नहीं सुधरेगा, लेकिन सुधरेगा।
प्रश्नकर्ता : दादा, ऐसा सुना है कि आत्महत्या के बाद सात जन्मों तक वैसा ही होता है। यह बात सच है?
दादाश्री : जो संस्कार पड़ते हैं, वे सात-आठ जन्मों के बाद जाते हैं, यानी ऐसा कोई गलत संस्कार मत पड़ने देना। गलत संस्कारों से दूर भागना। हाँ, यहाँ चाहे जितना दुःख हो, उसे सहन कर लेना, लेकिन गोली मत मारना। आत्महत्या मत करना। बड़ौदा शहर में आज से कुछ साल पहले सभी से कह दिया था कि आत्महत्या करने का मन हो, तब मुझे याद करना और मेरे पास