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सावधान जीव, अंतिम पलों में (८)
जी मर गए हैं? इसलिए वह सिर मुंडवा देता है, मूंछ निकलवा देता है, ताकि लोग जान जाएँ कि इनके घर में किसी की मृत्यु हुई है, इसलिए फिर 'चल मेरे साथ शादी में' ऐसी-वैसी बातें नहीं करें। ये तो हिन्दुस्तान के रिवाज़ हैं। किसी न किसी आशय के बिना तो होंगे ही नहीं न! उसने सिर मुंडवाया हो, फिर क्या कोई पछेगा कि, 'तेरे पिता जी की तबियत कैसी है?' नहीं, क्योंकि सिर मुंडवा लिया तो फिर समझ जाते हैं। कुछ पहचानने का साधन तो चाहिए या नहीं चाहिए?
प्रश्नकर्ता : इस हिसाब से तो जैन धर्म में ऐसा कोई झंझट नहीं है।
दादाश्री : धर्म का और उसका क्या लेना-देना? ये मूछे फ्रेंचकट रखनी या पूरी निकलवा देनी, उसका और धर्म का कोई लेना-देना नहीं है।
प्रश्नकर्ता : अर्थी निकालने के बाद राम का नाम या जय जिनेन्द्र क्यों बोलते हैं?
दादाश्री : तब फिर क्या बोलें? नाम तो चला गया। उसका कुछ अच्छा हो इसलिए जय जिनेन्द्र बोलते हैं या राम का नाम बोलते हैं कि 'राम बोलो भाई राम!' लोगों का रिवाज़ तो ऐसा है कि मर जाने के बाद पूजा करते हैं, ऐसे हैं लोग! वह जब जीवित था, तब अगर खिचड़ी में घी माँगे तो कहेंगे, ‘घी माँग रहे हो? अभी इस बुढ़ापे में?' और मर जाने के बाद 'फर्स्टक्लास' बारहवाँ करते हैं! वह जीते जी, यदि राम का नाम ले, तब घर के लोग परेशान करेंगे, कहेंगे कि, 'जाओ, उठकर चुपचाप चीनी लेकर आओ। यहाँ क्या राम-राम कर रहे हो?' यानी राम की भक्ति नहीं करने देते, और जब मरने का समय आए तो अंतिम घंटे में, अंतिम गुँठाणा हो और पूरे कषायों ने घेर लिया हो, तब लोग कान में चिल्लाते हैं कि, 'बोलो, राम बोलो,' अरे अब कहाँ से बोलेगा वह? अरे, बिना बात उसे किसलिए परेशान कर रहे