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आप्तवाणी-७
हो? उस बेचारे को उस घड़ी बहुत खराब लगता है। अंदर बेहद दु:ख होता है। अंदर ऐसा 'लाउड स्पीकर' जैसा लगता है और जीव डर जाता है! अरे, मत बोलना, मरने तो दो उसे अच्छी तरह, लेकिन ये लोग उसे ठीक से मरने भी नहीं देते। गाडी में से उतरते समय हम उसे कहें कि, 'कैसे हो? मज़े में हो? तबियत अच्छी है?' तो बल्कि पोटली मारेगा। अरे, उतरने दे न!
हमारे फादर की तबियत अच्छी नहीं थी, इसलिए हमारे बड़े भाई मणिभाई ने मुझसे कहा कि, 'तू काम पर रह, मैं फादर की तबियत पूछकर आता हूँ।' फिर वे भादरण चले गए। थोड़ी देर बाद फिर मुझे यों ही विचार आया कि, 'मैंने तो सब को काम सौंप दिया है। लाओ न मैं भी तबियत पूछकर आऊँ।' उसके बाद मैं तो चल पड़ा और गाड़ी में बैठ गया। रास्ते में मणिभाई मिल गए, वे बोरसद से आ रहे थे। उन्होंने मुझसे पूछा कि, 'अरे, तू आ गया?' मैंने कहा, 'हाँ, मुझे भीतर से विचार आया कि जाऊँ। तो मैं सभी को काम सौंपकर आ गया हूँ।' तब उन्होंने मुझसे कहा, 'तो अब तू घर जा और मैं अब वापस काम पर जाता हूँ।' मैं पिता जी के पास आया तो उन्होंने उसी रात जाने की तैयारी कर दी। तब तक वे रुके हुए थे। यानी जिसके कँधे पर चढ़ना हो उसी के कँधे पर चढ़कर जाते हैं।
फिर भी कुदरत छुड़वा ही देती है इतना अच्छा है कि हिन्दुस्तान देश में मरनेवाले को यह भय नहीं है कि कौन उठाएगा। इतना अच्छा है, नहीं तो उन्हें उठाए कौन? ये ऐसे-ऐसे कार्य करनेवाले, तो उन्हें उठाए कौन? लेकिन नहीं, उन्हें भी उठानेवाले मिल आते हैं। मरनेवाले को भय नहीं रहता कि कौन उठाएगा, क्योंकि मरनेवाला जानता है कि आप नहीं उठाओगे तो आपकी ही हवा बिगड़ेगी और आपको ही नुकसान होगा। इसलिए आप अपने आप ही साफ करो, हम तो 'यह' जायदाद छोड़कर चले जाएंगे। ये तो, जायदाद छोड़ें ऐसे नहीं हैं,