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आप्तवाणी-७
कर रहे हो?' इसलिए अगर चिंता करते हो तो अल्लाह के गुनहगार बन रहे हो।
प्रश्नकर्ता : यानी जो अल्लाह हैं, और उनकी अल्लाही में हमें दख़ल नहीं करनी चाहिए, ऐसा?
दादाश्री : दख़ल तो नहीं, लेकिन चिंता भी नहीं करनी चाहिए। हम चिंता करें तो अल्लाह नाखुश हो जाते हैं।
प्रश्नकर्ता : जो सवाल पैदा होते हैं, उनके जवाब तो चाहिए
न?
दादाश्री : जो सवाल पैदा होता है, उसका जवाब इतना ही है कि अल्लाह कहते हैं कि, 'है मेरा, और तू किसलिए चिंता कर रहा है?' चिंता नहीं करनी है। हमें उनकी सेवा करनी चाहिए, इलाज करवाना चाहिए, अंत तक उसके लिए प्रयत्न करना चाहिए। हम प्रयत्न करने के अधिकारी है, हमें चिंता करने का अधिकार नहीं है।
मृतस्वजनों से साधो अंतर-तार बेटे के मर जाने के बाद उसकी चिंता करने से उसे दु:ख होता है। लोग अज्ञानता से ऐसा सब करते हैं, इसलिए आपको 'जैसा है वैसा' जानकर शांतिपूर्वक रहना चाहिए। बेकार झंझट करने का क्या मतलब है फिर? जहाँ कभी कोई कोई बेटा नहीं मरा हो, ऐसा घर कहीं भी होगा ही नहीं! ये तो संसार के ऋणानुबंध हैं, लेन-देन का हिसाब हैं। हमारे यहाँ भी बेटा-बेटी थे, लेकिन वे मर गए। मेहमान आए थे, वे मेहमान चले गए। वह अपना सामान है ही कहाँ? क्या हमें भी नहीं जाना है? हमें भी जाना है वहाँ, यह क्या तूफ़ान है फिर? यानी जो जीवित हैं उसे शांति दो। गया वह तो गया, उसे याद करना भी छोड़ दो। जो यहाँ जीवित हैं, जितने आश्रित हैं उन्हें शांति दो। उतना अपना फ़र्ज़