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सावधान जीव, अंतिम पलों में (८)
कैसे हो सकेगा? यह तो व्यवहार से, लोकव्यवहार से अपना बेटा माना जाता है। वास्तव में वह अपना बेटा नहीं है। वास्तव में तो यह देह भी अपनी नहीं है। यानी कि जो अपने पास रहे, उतना ही अपना और बाकी का सब पराया है। इसलिए यदि बेटे को खुद का बेटा मानते रहोगे तो परेशानी होगी और अशांति होगी ! वह बेटा अब गया, खुदा की इच्छा यही है तो उसे अब 'लेट गो' कर लो।
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प्रश्नकर्ता: वह तो ठीक है, अल्लाह की अमानत अपने पास थी, वह ले ली!
दादाश्री : हाँ, बस । यह पूरा बाग़ अल्लाह का ही है । प्रश्नकर्ता : उसकी मृत्यु इस प्रकार से हुई, तो क्या वे हमारे कुकर्म होंगे?
दादाश्री : हाँ, बेटे के भी कुकर्म और आपके भी कुकर्म । अच्छे कर्म हों तो उसका बदला अच्छा मिलता है।
प्रश्नकर्ता : क्या हम अपना दोष ढूँढ सकते हैं कि इस प्रकार का कुकर्म हुआ था?
दादाश्री : हाँ, वह सब पता चल सकता है, उसके लिए सत्संग में बैठना पड़ेगा ।
यह अल्लाह का बाग़ है । आप भी अल्लाह के बाग़ में हो और बेटा भी अल्लाह के बाग़ में है । अल्लाह की मरज़ी के अनुसार सब चलता रहता है, उससे संतुष्ट रहना है । अल्लाह जिसमें राज़ी, उसमें हम लोग भी राज़ी ! बस, खुश हो जाना है !
प्रश्नकर्ता : तब तो फिर कोई प्रश्न ही नहीं रहता ।
दादाश्री : अल्लाह ने क्या कहा है कि, 'आप चलानेवाले हो तो आप चिंता करो, लेकिन चलाना मुझे है तो आप क्यों चिंता