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सावधान जीव, अंतिम पलों में (८)
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है। यह तो जो जा चुके हैं उन्हें याद कर रहे हो और इन्हें शांति नहीं दे सकते, यह कैसा? इस तरह फ़र्ज़ चूक जाते हो सारा। आपको ऐसा लगता है क्या? गया वह तो गया। जेब में से लाख रुपये गिर गए और फिर नहीं मिले तो क्या करना चाहिए? सिर फोड़ना चाहिए?
प्रश्नकर्ता : भूल जाना चाहिए।
दादाश्री : हाँ, अतः यह सब नासमझी है। किसी भी तरह से बाप-बेटे हैं ही नहीं। बेटा मरे तो चिंता करने जैसा है ही नहीं। वास्तव में यदि चिंता करनी हो जगत् में तो माँ-बाप मरें, तभी मन में चिंता होनी चाहिए। बेटा मर जाए, तो बेटे का और अपना क्या लेना-देना? माँ-बाप ने तो अपने ऊपर उपकार किया था, माँ ने तो हमें पेट में नौ महीने रखा और फिर पाल-पोसकर बड़ा किया। पिता जी ने पढ़ने के लिए फीस दी है और सबकुछ दिया है। कुछ एहसान मानने जैसा हो तो माँ-बाप का है। बेटे से क्या लेना-देना? बेटा तो ज़ायदाद लेकर गालियाँ देगा। अतः, बेटे के साथ संबंध रखना, लेकिन मर जाए तो इस तरह मन में दु:ख मत मनाना। आपको कैसी लग रही है मेरी बात?
यह अपने हाथ का खेल नहीं है और उस बेचारे को वहाँ दुःख होता है। यदि हम यहाँ पर दु:खी होते हैं तो उसका असर उसे वहाँ पर पहुँचता है। तो उसे भी सुखी नहीं रहने देते और हम भी सुखी नहीं रहते। इसी वजह से शास्त्रकारों ने कहा है कि, 'जाने के बाद दुःखी मत होना।' इसलिए लोगों ने क्या कहा कि गरुड़ पुराण रखो, फलाना रखो, पूजा करो और मन में से भूल जाओ। आपने ऐसा कुछ किया था? फिर भी नहीं भूले?
प्रश्नकर्ता : लेकिन उसे भूल नहीं पाता। बाप और बेटे के बीच व्यवहार ऐसा था कि अच्छा चल रहा था, इसलिए वह भुलाया जा सके ऐसा नहीं है।