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आप्तवाणी-७
....ऐसा कुछ कर कबीर साहब ने ऐसा कहा है कि, 'जब तेरा जन्म हुआ तब तू रो रहा था और लोग हँस रहे थे।' सभी को आनंद होता है, पेड़े ले आते हैं और लोगों को पेड़े बाँटते हैं, और लोग पेड़े खाते हैं! सही कहते हैं न, कबीर साहब? क्योंकि जब तू रो रहा था तब किसीने ऐसा नहीं कहा कि, 'यह बच्चा बेचारा रो रहा है, अभी यह सब कुछ समय के लिए रहने दो,' फिर कबीर साहब क्या कहते हैं कि, 'अब दुनिया में आकर ऐसा कुछ कर कि मरते समय तू हँसे और लोग रोएँ!' ऐसा कैसे हो सकेगा?
प्रश्नकर्ता : अच्छे कर्म किए होंगे तो ऐसा होगा।
दादाश्री : हाँ, लोगों के प्रति बहुत अच्छे कर्म किए होंगे तो लोगों के मन में ऐसा होगा कि, 'अरेरे! इनके आधार पर तो हम जी रहे थे, आनंद भोग रहे थे।' इसीलिए तो फिर लोग रोते हैं। जिनका आधार चला जाए वे सब रोते हैं और जानेवाला जानता है कि मेरा जीवन संतोषपूर्वक बीता है। उन्हें बेहद संतोष रहता है, इसलिए हँसते-हँसते जाते हैं!
कल्पांत की जोखिमदारी कितनी? प्रश्नकर्ता : 'व्यवस्थित' की बात की, तो वह 'व्यवस्थित' कौन सी शक्ति है?
दादाश्री : वह 'सायन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स' है। उसे हम गुजराती में 'व्यवस्थित शक्ति' कहते हैं और वह निरंतर जगत् को 'व्यवस्थित' ही रखती है, अव्यवस्थित होने ही नहीं देती। एकलौता बेटा मर जाए, तब भी 'व्यवस्थित' के हिसाब से ही होता है, लेकिन यह तो अपने लोभ के कारण, अपने स्वार्थ के कारण रोता है। अतः उसे अव्यवस्थित मानता है। जेब कट जाए, वह भी 'व्यवस्थित' ही है, लेकिन फिर स्वार्थ के कारण, लोभ