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आप्तवाणी-७
नहीं होते, तब तक तो कुछ भी नहीं। और दो टुकड़े हो गए तो कहेगा, 'कट गया।' लेकिन भाई, यह तो कट ही रहा था। उसी तरह इन लोगों में भी यह सब कट ही रहा है। फिर भी है किसी को कोई डर? लेकिन जब अलग हो जाएगा, उस दिन डर लगेगा!
स्मशान तक का साथ यह तकिया होता है, तो उसकी खोल बदलती रहती है, लेकिन तकिया वही का वही। खोल फट जाती है और बदलती रहती है, उसी प्रकार यह खोल भी बदलती रहेगी।
प्रश्नकर्ता : तो फिर लंबे जीवन की अपेक्षा किसलिए रखते होंगे?
दादाश्री : वही भ्रांति है न!
प्रश्नकर्ता : तो फिर घर के लोग आप से कहते हैं कि, वे भाई बहुत ‘सिरियस' हैं, ज़रा विधि कर लीजिए, वह भी भ्रांति ही है न?
दादाश्री : वह भी भ्रांति ही है, लेकिन ऐसा है न, कुछ तो व्यवहार से करना पड़ता है और वैसा नहीं कहेंगे तो वे भाई क्या कहेंगे घर के सब लोगों से कि, 'आपने कुछ किया नहीं, आपको मेरी पड़ी ही नहीं है।' और ऐसा-वैसा कहेंगे। यानी ऐसे, विधि करवानी पड़ती है।
वर्ना यह जगत् पोलम्पोल है। फिर भी व्यवहार से नहीं बोले तो उसके मन में दुःख होगा, लेकिन स्मशान में उसके साथ जाकर कोई भी चिता में नहीं गिरा है। घर के सभी लोग वापस आते हैं। सभी समझदार हैं। उसकी माँ हो तो वह भी रोतीरोती वापस आती है।
प्रश्नकर्ता : फिर उसके नाम से छाती कूटती है कि कुछ