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आप्तवाणी-७
दादाश्री : जिनका अंत समय नज़दीक आया हो, उन्हें तो बहुत संभालना चाहिए। उनका प्रत्येक बोल संभालना चाहिए। उन्हें नकारना नहीं चाहिए। सभी को उन्हें खुश रखना चाहिए और वे उल्टा बोलें तब भी आपको ‘एक्सेप्ट' करना चाहिए कि 'आपका सही है!' वे कहें, 'दूध लाओ।' तो तुरंत दूध ला देना। तब वे कहें, 'यह तो पानीवाला है, दूसरा ला दो।' तो तुरंत दूसरा दूध गरम करके ले आएँ। फिर कहना कि, 'यह शुद्ध और अच्छा है।' यानी उन्हें जैसा अनुकूल आए वैसा करना चाहिए। ऐसा सब बोलना चाहिए।
प्रश्नकर्ता : यानी इसमें सही-गलत का झंझट नहीं करना चाहिए?
दादाश्री : यह, सही-गलत तो दुनिया में होता ही नहीं है। उन्हें पसंद आया कि बस, उसी तरह सब करते रहना चाहिए। उन्हें अनुकूल आए उस तरह से व्यवहार करना चाहिए। छोटे बच्चे के साथ हम किस तरह बर्ताव करते हैं? बच्चा काँच का प्याला फोड़ दे तो क्या हम उसे डाँटते हैं? दो साल का बच्चा हो उसे कुछ कहते हैं कि क्यों फोड़ दिया तूने या ऐसा कुछ? जिस तरह बच्चे के साथ बर्ताव करते हैं, उसी तरह उनके साथ बर्ताव करना चाहिए।
ये तो मर जाने के बाद उन पर फूल चढ़ाते हैं। अरे, मरने के बाद क्यों फूल चढ़ा रहे हो? अरे, जब वह जीवित है, तब फूल चढ़ाओ न! क्योंकि भीतर भगवान हैं, भीतर आत्मा बैठा हुआ है। लेकिन जीते जी तो कभी भी कोई फूल नहीं चढ़ाता न? इसी को दूषमकाल कहते हैं! हिताहित का भान या खुद का हित किसमें है और अहित किसमें है, मनुष्य में इसका भान ही खत्म हो जाए, उसे कहते हैं दूषमकाल!
गति-परिणाम कैसे? प्रश्नकर्ता : हार्ट फेल हो जाए, वह तो ऊपर पहुँच जाता है, लेकिन ज़रा शांति से ऊपर जाए, ऐसा कोई रास्ता है?