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भय में भी निर्भयता (६)
आओ सेठ, आओ आओ।' वे मक्खन लगाते रहते हैं। अरे, उसे क्यों मक्खन लगा रहा है? वापस उल्टी पटरी पर चढ़ा देता है! अरे, सीधा रास्ता बता दें तो आगे कोई रास्ता ढूँढेगा? लेकिन यह तो मक्खन लगाता रहता है! आपको मक्खन पसंद है या नहीं?
प्रश्नकर्ता : नहीं पसंद।
दादाश्री : ऐसा! लेकिन लोग मक्खन लगाते हैं न कि, 'भान्जा आया! आओ आओ!' अरे, उससे अपने क्या दिन बदलेंगे? शुक्रवार जाता नहीं और शनिवार आता नहीं, एवरी डे फ्राइडे! जब जाओ तब फ्राइडे और शनिवार आता नहीं। आपका शुक्रवार बदलना तो चाहिए न?!
कोशिश-प्रयत्न, पंगु अवलंबन यानी 'हम कौन है?' वह जानना तो पड़ेगा या नहीं जानना पड़ेगा?
प्रश्नकर्ता : जानना पड़ेगा। दादाश्री : तूने जाना? प्रश्नकर्ता : वह जानने का प्रयत्न कर रहा हूँ।
दादाश्री : वापस प्रयत्न? प्रयत्न से तो संडास भी नहीं उतरती। प्रयत्न तो हो जाता है। जो अपने आप हो जाए, वह प्रयत्न!
__ ये दो वाक्य संसार में गलत घुस गए हैं। या तो कहेगा कि 'प्रयत्न कर रहा हूँ,' नहीं तो कहेगा कि 'कोशिश कर रहा हूँ।' अरे, किस चीज़ के लिए कोशिश करते रहते हो? जो अपने आप हो जाता है, उसे किसलिए करते रहना? अभी साँप जा रहा हो और नहीं देखा, लेकिन एकदम किसी की नज़र उस पर पड़े कि तुरंत कूदेगा न? इस तरह कूदेगा कि साँप को छूए नहीं,