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[८] सावधान जीव, अंतिम पलों में
परभव की गठरियाँ समेट न! एक अस्सी साल के चाचा थे, उन्हें अस्पताल में भर्ती किया था। मैं जानता था कि ये दो-चार दिन में जानेवाले हैं यहाँ से, फिर भी मुझसे कहने लगे कि, 'वे मगनभाई तो मुझसे यहाँ मिलने भी नहीं आए।' हमने बताया कि, 'मगनभाई तो आ गए।' तो कहने लगे कि, 'उस नगीनदास का क्या?' यानी कि बिस्तर में पड़ेपड़े नोंध (द्वेषसहित लंबे समय तक याद रखना) करते रहते थे कि कौन-कौन मिलने आया। अरे, अपने शरीर का ध्यान रख न, अब दो-चार दिनों में तो जाना है। पहले तू अपनी गठरियाँ संभाल, तेरी यहाँ से ले जाने की गठरियाँ तो जमा कर। ये नगीनदास नहीं आए तो उसका क्या करना है? लेकिन फिर वे चाचा ऐसी नोंध करते रहते हैं कि, 'मुझसे कौन-कौन मिलने आया?' अरे, तुझसे मिलने आए उससे तुझे क्या फायदा? वे मिलने के बाद वापस बाहर जाकर क्या कहेंगे? कि, 'अब ये चाचा तो चले, अब दो दिन के मेहमान हैं!' ये लोग कैसे आशीर्वाद देकर जाते हैं कि 'ये अब गए'! यानी कि मिलने आनेवाले ऐसा कहते हैं। ये तुझसे मिलने आए उससे क्या फायदा हुआ? इसके बजाय नहीं आएँ तो अच्छा है न, ताकि ऐसे आशीर्वाद तो नहीं दें? मिलने आनेवाले बाहर जाकर क्या कहते हैं कि, 'अब, दीये में तेल खत्म हो गया है और अब तो बाती ही जल रही है।' जबकि चाचा क्या कहते हैं कि, 'वे नगीनभाई मिलने नहीं आए!' जगत् की