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आप्तवाणी-७
इस नौकर की जगह पर हों तो आपका न्याय कैसा रहेगा?' फिर नौकर को गालियाँ दीं, तो वह घोर अन्याय नहीं है ? इन्डियन फिलॉसफि क्या ऐसी होती होगी? वास्तव में तो हमें इतना अधिक नोबल रहना चाहिए कि... यदि हम वहाँ पर होंगे तो क्या करेंगे कि नौकर के हाथ में से ट्रे गिर जाए और प्याले फूट जाएँ, तो पहले तो हम नौकर से पूछेंगे कि, 'भाई, तू जला तो नहीं न? भले ही प्याले फूट गए, वे तो दूसरे आ जाएँगे लेकिन तू नहीं जला न?' पहले ऐसा पूछना पड़ेगा, क्योंकि खूब जल गया हो और हम कुछ बोलें तो वह गलत कहलाएगा। अगर नहीं जला हो तो फिर दूसरी बात करना कि, 'भाई, ज़रा धीरे से आहिस्ताआहिस्ता आए तो ऐसी परेशानी नहीं होगी ।' फिर ऐसे कहना पड़ेगा। ऐसा नहीं कहा तो वह भी गुनाह कहलाएगा, क्योंकि सावधान करने के लिए ऐसे टोकना तो पड़ेगा, लेकिन इस तरह मत टोकना कि, 'तेरे हाथ टूटे हुए हैं, तू ऐसा है, वैसा है।' ऐसे मत टोकना। उसे तो टोकना भी नहीं कहा जाएगा, हिंसा कहा जाएगा। नौकर बेचारा भी ऐसी ही आशा रखता है कि अभी मुझे ऐसा कहेंगे, 'तेरे हाथ टूटे हुए हैं, ' इसीलिए भीतर काँप रहा होता है कि,
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अब क्या कहेंगे? सेठ-सेठानी अब क्या कहेंगे?' वह नौकर मन में समझता है कि ये सेठ और सेठानी दोनों ही चीते जैसे हैं। जैसे चीते दहाड़ते हैं, वैसे ही ये दहाड़ेंगे। अंदर वह इस तरह से डरता है। अब उस सेठ को मैं समझाता हूँ कि, 'सेठ, आप उसकी जगह पर होते तो क्या होता?' ऐसा सोचो तो सही। वैसे तो आप पुण्यशाली हो, अत: उसकी जगह पर आप नहीं आओगे, लेकिन तू तेरे बॉस के हाथ में इसी तरह आ जाएगा, इसलिए सावधान रहना।' जिसका तू बॉस है, उस पर ऐसे पावर का उपयोग करना कि जब तेरा बॉस वैसे ही पावर का उपयोग तुझ पर करे, उस समय तेरी कसौटी नहीं हो ! बॉस तो सभी के होते ही हैं न? मेरे जैसा हो, उसके बॉस नहीं हैं, लेकिन और सभी के तो बॉस होंगे ही न! जिसे अन्डरहैन्ड का शौक है या जिसे ऐसा