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कढ़ापा-अजंपा (७)
रहे मेरे नीचे एक तो चाहिए, उसके बॉस तो होंगे ही। हमें अन्डरहैन्ड का शौक नहीं है, इसीलिए कोई बॉस ही नहीं है।
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कैसा अन्याय कहलाएगा? 'घोर अन्याय किया' कहलाएगा! ऐसे तो भयंकर दोष किए हैं! खुद को पता भी नहीं चलता कि 'मैंने यह दोष किया है।' नौकर के साथ ऐसा बर्ताव करने के बाद, ऐसा दोष हो गया है, ऐसा भी पता नहीं चलता । 'नौकर ही गलत है, उसे निकाल देना है,' ऐसा कहता है और इसलिए खुद को ये सभी अड़चनें हैं। इसीलिए मोक्ष नहीं मिलता, वर्ना यदि मोक्ष के न्याय को समझे न, तो संपूर्ण मोक्ष मिले, ऐसा है। संसार का न्याय, वह न्याय नहीं है। भगवान का न्याय, वह न्याय है।
भगवान का न्याय क्या है कि जितने भी देहधारी जीव हैं, फिर पेड़ हो या चाहे जो हो, लेकिन जीवित हैं । जीवित हैं, ऐसा कैसे पता चलेगा, कि यदि पेड़ को काट दें तो उसका लावण्य चला जाएगा, यानी जितने भी लावण्यवाले जीव हैं, उनके भीतर भगवान बैठे हैं। इसलिए अगर उन्हें किंचित्मात्र भी दु:ख हो तो, वह सब अन्याय कहा जाएगा ।
साधनों की मात्रा कितनी होनी चाहिए?
अहमदाबाद के सेठों की दो मिले हैं, फिर भी उनकी बेचैनी का तो यहाँ पर वर्णन नहीं किया जा सकता, ऐसा है । दो-दो मिले हैं, फिर भी वह कब फेल हो जाए, वह कहा नहीं जा सकता। यों तो स्कूल में अच्छी तरह पास होते थे, लेकिन यहाँ पर कब फेल हो जाएँ, वह कहा नहीं जा सकता, क्योंकि उसने 'बेस्ट फूलिशनेस' शुरू कर दी है। 'डिस्ओनेस्टी इज द बेस्ट फूलिशनेस ।' इस फूलिशनेस की तो हद होगी न? कि 'बेस्ट' तक पहुँचना है? तो आज बेस्ट फूलिशनेस तक पहुँच गए! और हम, वहाँ पर बड़े-बड़े बंगले होते हैं न, उन बंगलों में हम सफाई देखते हैं न? उसी तरह के ये बड़े-बड़े मकान होते हैं । वे कितनी