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कढ़ापा-अजंपा (७)
हैं, वर्ना नौकर कहीं प्याले फोड़ता होगा? यदि नौकर प्याले फोड़ सकता तो रोज़ ही फोड़ता । जब उससे हाथ में नहीं पकड़ा जाए, तभी टूटेगा न? इस वर्ल्ड में कोई चीज़ कोई फोड़ता ही नहीं, यह तो सब आपका ही हिसाब चुक रहा है। उसमें नौकर तो बेचारा निमित्त बन जाता है। लेकिन नौकर के हाथ से प्याले फूटते ही सेठानी शोर मचा देती है और यदि सेठ बैठे हुए हों न, तो वे भी अकुलाते (गुस्सा, चिढ़) रहते हैं । अरे, एक भागीदार अकुलाए तो बहुत हो गया, एक को ही अकुलाने दो न! सभी भागीदारों के अकुलाने का कारण क्या है? कंपनी में एक भागीदार अकुलाए कि बहुत हो गया ! भले ही एक का बिगुल बजे ! लेकिन सभी के बिगुल साथ में क्यों बजाएँ ? सब क्यों बजाते होंगे? इच्छा नहीं हो तब भी बज जाता है, क्योंकि अज्ञान उसे जोड़ देता है न! और जब सभी बिगुल बजने लगें, तब वह नौकर तो काँप जाता है! जब सभी घेर लेते हैं तब वह बच्ची होती है न, वह भी किच-किच करती हुई आती है कि, 'अरे, इस बेवकूफ को तो मारने जैसा है।' तब फिर नौकर की क्या दशा होगी ?
अब नौकर के साथ, किस तरह व्यवहार करें?
मोक्ष में नहीं जाना हो, लेकिन यहाँ पर तो ठंडक होनी चाहिए न ? भीतर अजंपा नहीं हो, उतना तो समझना पड़ेगा न? प्याला फूट जाए और कढ़ापा - अजंपा करें, तो वह अपनी ही भूल है न? या प्याले की भूल है ?
प्रश्नकर्ता : अपनी ही भूल है।
दादाश्री : यानी सिर्फ सेठ अकेले ही अजंपा नहीं करते, सेठानी भी भीतर अजंपा करती रहती हैं। वह अकेला अजंपा कर रहा है, उसमें आप क्यों भागीदारी कर रही हो? लेकिन उसमें भी पार्टनरशिप ! वे दोनों पार्टनर हैं इसमें भी ! तब नौकर बेचारा अकेला फँस जाता है। अब मैं क्या कहता हूँ कि 'अगर आप
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