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आप्तवाणी-७
मैं भी घबराता था। फिर मैंने पता लगाया कि कुछ भी गिरा ही नहीं, मैं बिना बात के घबरा रहा था। फिर मैंने अंबालालभाई से कहा, अंदर भगवान से नहीं, इस अंबालालभाई से कि, 'कभी कुछ भी नहीं गिरा है, बेकार ही क्यों घबराते रहते हो? अभी तक घबराए हो, उसमें कुछ गिरा?' तब कहा कि, 'नहीं, कुछ भी गिरा तो नहीं है।' तब मैंने कहा कि, 'तो बिना बात के क्यों घबराते रहते हो? कुछ भी नहीं गिरेगा, आप खुद ही भगवान हो, बेकार ही 'हाय, हाय, ऐसा होगा या वैसा होगा,' ऐसा किसलिए करते हो? न तो आपको बेटे हैं, न ही बेटियाँ, तो फिर क्यों इतनी हाय-हाय करते हो? यदि बेटे-बेटियाँ होते तो आपकी क्या दशा होती? नहीं हैं, फिर भी इतनी हायहाय है! न तो आपको पैसे चाहिए, न ही आपको घर चाहिए, न ही आपको गाड़ी-मोटर चाहिए, तो फिर किसलिए ऐसे डरते रहते हो कि इन्कमटैक्सवाला आ जाएगा और फलाना आ जाएगा? गिरेगी तो यह दीवार गिरेगी न? और क्या होनेवाला है! अब से ऐसा मत बोलना, 'यह गिरनेवाला है।' ज़रा सा भी घबराने की ज़रूरत ही क्या है?!
करेक्ट को क्या भय? वीतराग हो जाओगे तो भय जाएगा, नहीं तो जगत् में भय लगता ही रहेगा। सभी को भय लगता है। किसीने नई साइन्टिफिक खोज की हुई हो, रात को अपने पासवाले रूम में वह सब अच्छी तरह जमाकर रख आए और वह यंत्र यदि विचित्र शब्द करे तो लगता है कि भूत आया, तो पूरी रात नींद नहीं आती। इतनी अधिक घबराहट, भय रहा करता है। अब कब तक यह सब पुसाएगा?
अब रात को अंधेरे में जा रहे हों और कोई व्यक्ति यों ही सामने से आ रहा हो तो मन में ऐसा लगता है कि यह आदमी लूट लेगा। आपको ऐसे विचार नहीं आते न?
प्रश्नकर्ता : अभी तो मंजिल बहुत दूर है।