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भय में भी निर्भयता (६)
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भयवाला जगत् है, उसमें आप क्या भय रखोगे? यदि आप अपने स्वरूप में रहो तो आपको भय रहेगा ही नहीं। यह देह आपकी सत्ता में नहीं है। पराई सत्ता में हम माथापच्ची करें तो उसका क्या अर्थ?
'ज्ञान' लेने से पहले इन्कमटैक्स का पत्र आए और भीतर लिखा हो कि, 'आपने ऐसा किया है इसलिए आपको इतना दंड दिया जाएगा,' तब आपको भय घुस जाता है कि 'यह दंड देगा, यह दंड देगा!' वह भय तो दोपहर को भोजन करते समय निकल जाएगा न? भोजन करते समय चैन से खाने के लिए क्या करते हो? कपड़े बदलकर, पंखा चलाकर चैन से टेबल पर खाना खाने बैठते हैं, तब क्या उस भय को बाहर रख देते हो? साथ में ही रखते हो न! यानी कितनी-कितनी कसौटियों के बीच में जीव जी रहा है! भोजन अच्छा हो, लेकिन उस बेचारे को टेस्ट नहीं आता। बच्चे तो चैन से चखते हैं, क्योंकि उन्होंने भय देखा ही नहीं। बच्चे में बुद्धि नहीं है। बुद्धि नहीं है, तो फिर है कोई झंझट? वह भी रोने के टाइम पर रोता है, हँसने के टाइम पर हँसता है, और कोई झंझट नहीं है न! उन्हें तो 'वर्क व्हाइल यू वर्क, प्ले व्हाइल यू प्ले, देट इज़ द वे। टू बी हैपी एन्ड गे,' इस तरह वह हँसने के टाइम पर हँसता है और रोने के टाइम पर रोता है और कूदने के टाइम पर कूदता है। और यह बुद्धिवाला तो हँसने के टाइम पर रोता है। रोने के टाइम पर तो रोता ही है, लेकिन हँसने के टाइम पर भी रोए बगैर नहीं रहता, क्योंकि मन में वापस वह भय रहा ही करता है। एक चीज़ पैर में घुस जाए, तो हमें बार-बार चुभती ही रहती है, उसी तरह वह भय चुभता रहता है। मैं भी व्यापारी हूँ न, इसलिए ऐसा पत्र आए तब मैं पढ़कर समझ लेता हूँ कि यह भय सिग्नल है और एक तरफ रख देता हूँ! भय को जानना होता है और निर्भयता को भी जानना होता है। ये सब जानने की चीजें हैं, अलमारी में सहेजकर रखने की एक भी चीज़ नहीं है!