________________
भय में भी निर्भयता (६)
तो ड्राइवर ड्राइविंग कर ही नहीं सकेंगे। टकरा ही जाएँगे ! यानी जो माल नहीं भरा है, उसके विचार तक नहीं आते। कुछ लोगों को तो, रात को एकांत में अकेले हों, फिर भी भय नहीं लगता और किसी को तो अकेला पड़ा कि भूत याद आता रहता है। टेकनिकली शोध (विश्लेषण) करें, तब भी समझ में आ जाएगा कि भरे हुए भय के ही विचार आते हैं ।
१०१
ये स्त्री-पुरुष विवाह करते हैं, लेकिन वैसा माल नहीं भरा कि, ‘वैधव्य आएगा तो क्या होगा?' इसलिए उन्हें ऐसा विचार भी नहीं आता कि वैधव्य आएगा तो क्या होगा? वास्तव में तो वैधव्य किसी को ही आता है। खास करके ऐसा होता नहीं लेकिन अंत में तो वैधव्य ही है न! लेकिन वैसा भय ही नहीं लगता न! और ऐसा तो क्या विवाह किया, कि फिर से विधवा होना बाकी रहा? विवाह के समय तो ठाठ - वाट होते हैं और मंडप वगैरह सब होता है। लेकिन यह मंडप रोज़-रोज़ नहीं होता। वह तो जिस दिन विवाह किया सिर्फ उसी दिन मंडप और वह भी किराये का लाकर बनाते हैं न! ये बच्चे लोग गुड्डे-गुड़िया की शादी नहीं करते? प्रसाद भी बाँटते हैं। इसके बावजूद भी यह 'इल्यूजन' नहीं है और हटाने से हटे ऐसा है भी नहीं ।
तुझे भय लगता है क्या? बाघ आ जाए तो? वह तो निमित्त के बिना पता नहीं चलेगा न? ऐसा है न, कि वर्तमान भय तो लगता ही है। उस भय के परमाणु नहीं होते तो इस रोड पर से गाय-भैंसे उठती ही नहीं और यह व्यवहार चलता ही नहीं और वह रोड भी नहीं चलती । होर्न बजाते रहते तो भी गायें उठती ही नहीं, बैठी ही रहतीं। लेकिन जानवरों में वह भय संज्ञा होती है न और इसीलिए तो छोटा सा पिल्ला हो तो वह भी गाड़ी देखकर उठकर चलता बनता है, भयसंज्ञा उसे उठाती है !
I
गायें - भैंसें, रास्ते पर से
भय की ज़रूरत है या नहीं? ये खड़ी ही नहीं होंगी और वे कहेंगी, 'जाओ, आप से जो हो सके