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आप्तवाणी-७
वह कर लो।' ये चिड़िया भी नहीं उड़ेंगी, लेकिन नहीं, भय से गायें-भैंसे रास्ते पर से उठकर चलने लगती हैं। यानी यह जगत् भय से ही चल रहा है, इन मनुष्यों को भी भय की ज़रूरत है। जो लोग 'ज्ञानीपुरुष' से मिलें और 'ज्ञानीपुरुष' को ऐसा लगे कि इसे भय की ज़रूरत नहीं है तो वे भय निकाल देते हैं और फिर पास कर देते हैं। वर्ना ये तो अभी फेल हुए हैं। जिसे भय है, वे फेल हुए हैं। भय जाए तो काम होगा, नहीं तो चलेगा ही नहीं न!