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कढ़ापा-अजंपा 'प्याला' करवाए कढ़ापा-अजंपा! मोक्ष का मार्ग इतना सरल नहीं है। यह तो यहाँ पर सरल मार्ग खुल गया है, वहाँ अपना काम निकाल लेना है। सरल मार्ग
और वह भी चिंता रहित! वर्ना कढ़ापा-अजंपा सभी को होते हैं। सत्तर साल का व्यक्ति भी, यदि दो प्याले फूट गए हो और आवाज़ सुने तो बोलेगा, 'अरे, यह क्या फूटा?' दो प्यालों में तो जैसे आत्मा फूट गया हो न, ऐसा होता है और पूरा ही जगत् ऐसा करता है न? अब, इसमें कौन फोड़ता है? वह जानता नहीं और 'नौकर ने ही फोड़े' ऐसा कहता है। अरे, नौकर तो फोड़ता होगा? नौकर कहीं अपना विरोधी नहीं है। अब, नौकर का गुनाह नहीं है, लेकिन फिर भी ये लोग ऐसा बोलते रहते हैं न कि 'नौकर ही फोड़ते हैं'! बहुत दिनों तक ऐसा हो तो नौकर फिर एक दिन चाकू मारकर चला जाता है। तब फिर लोग शोर मचाते हैं कि 'अब तो नौकर मार डालते हैं!' मारें नहीं तो क्या करें? आप उसे रोज़ मारते रहते हो तो फिर एक दिन वह पूरा मार देता है! इसलिए 'नौकर के साथ कैसे बर्ताव करना चाहिए' उसे वह समझना नहीं पड़ेगा? |
नौकर के हाथ में से गिरकर प्याले फूट जाए तो हमें उसे ऐसे कहना चाहिए कि, 'भाई, गरमागरम चाय तेरे पैर पर गिर गई, तो तू जल तो नहीं गया न?' तब उसे कितना अच्छा लगेगा? उसके घर पर भी कोई ऐसा आश्वासन नहीं दे वैसा आश्वासन