________________
९८
आप्तवाणी-७
जंगल में लुटेरे मिल जाएँ और लूट लें तो रोना नहीं है, आगे प्रगति के लिए 'अब क्या करना चाहिए?' उस बारे में सोचना। 'अब आगे क्या करना चाहिए?' सोचे तो भगवान उसकी सब तरह से सहायता करते हैं, लेकिन वहाँ पर 'मेरा क्या होगा?' पूरी रात ऐसे रोए तो? वहीं पर जंगल में ही रोता रहे तो उसे कौन चाय पिलाएगा? इसके बजाय तो चलने लग न, आगे चाय पिलानेवाले मिल आएँगे, खिलानेवाले मिल आएँगे, सबकुछ मिल आएगा। भगवान के घर पर कोई कमी नहीं है। लुटेरे तो बहुत मिलेंगे, ऐसे एक नहीं अनेक मिलेंगे। अतः यदि लुट जाए तो आगे बढ़ने लगना। लुटने पर रोना-धोना मचाए तो कुछ नहीं होगा। पूरा जगत् लुटा हुआ ही है, लूटनेवाले उन्हें मिल ही आते हैं। और फिर वह हिसाब है। पिछले हिसाब के बगैर कोई लूट नहीं पाएगा। पिछले हिसाब के बिना कोई भी व्यक्ति हमें नहीं लूट सकता।
क्रिया से नहीं, भाव से बीज डलते हैं
इंसान अभी झूठ बोलता हुआ दिखाई देता है, लेकिन कोई इंसान आज झूठ बोल ही नहीं सकता, या फिर ऐसी लुच्चाई कर ही नहीं सकता, चोरी कर ही नहीं सकता, उसकी शुरूआत आज नहीं हुई है, वह पहले हो चुका है। आज उसकी शुरूआत नहीं दिखाई देगी। जिस की चोरी की शुरूआत हुई होगी, वह यहाँ पर नज़र नहीं आएगी। आज वह साहूकार दिखेगा। दिखने में हमेशा साहूकार दिखेगा, लेकिन उसके अंदर चोरी के बीज डल रहे होते हैं। उसका हमें पता नहीं चलता, लेकिन जब वह वृक्ष के रूप में उगेगा तब हमें यहाँ पर दिखेगा। जब वृक्ष रूपी हो जाएगा, तब लोग कहेंगे कि 'यह आज चोरियाँ कर रहा है।' लेकिन वास्तव में तो वह न जाने कब से ही था।
प्रश्नकर्ता : कोई इस जन्म में नई क्रिया नहीं कर सकता?
दादाश्री : ऐसे दिखने में नई क्रिया नहीं कर सकता, लेकिन अंदर चल रही होती हैं।