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आप्तवाणी-७
कमरा किराये पर दें? फिर वह हमेशा साथ में बैठे-बैठे डराता रहेगा, इसके बजाय उसे किराये पर देना ही नहीं। हमें अपना रूम साफ रखना है।
जो विचार दुनिया में टीका की श्रेणी में आता है, ऐसा विचार आते ही उसे शुद्ध कर डालो, धोकर साफ कर डालो! लोग रूम नहीं धोते? उसे क्या कहते हैं? पोंछा लगाना कहते हैं न? तो हमें पोंछा लगा देना चाहिए। सुबह एक पोंछा लगा देना, दोपहर में एक पोंछा लगा देना और रात को सोने से पहले एक बार पोंछा लगा देना। और जब अधिक खराब विचार आ जाए तो पोंछा लगा देना। खराब विचार आएँगे तो सही, क्योंकि माल भरा हुआ है इसलिए आएँगे, लेकिन हमें तो पोछा लगा देना है। यानी भय को कमरा किराये पर नहीं देंगे। और अंत में उसका नाम क्या है? भय! उस बगैर दाढ़ीवाले आदमी को रूम किराये पर क्यों दें?
बिदका हुआ घोड़ा हो और उसके पैरों के पास कोई पटाखा फोड़े तो उसकी क्या दशा होगी? अरे, गाड़ी भी उलट देगा। ऐसी इन लोगों की दशा हो गई है। इसलिए 'ज्ञानीपुरुष' कहते हैं न, कि 'भाई, आपको ऐसा नहीं कहना चाहिए कि 'साहब, मैं कर लूँगा'।' ऐसा कहना कि, 'साहब, आप ही कर दीजिए।' क्योंकि मैं जानता हूँ कि आप से यह नहीं हो पाएगा, क्योंकि डरपोक हो। रात को पोस्टमेन आए कि 'तार है,' यह सुनते ही, 'क्या हो गया? क्या है?' अरे, उसमें क्या होना है भला? लेकिन 'तार है' ऐसा कहे तो उससे चौंककर घबरा जाता है! अब, कभी इन्कमटैक्स का पत्र भी आ सकता है कि, 'भाई, आपका रिफन्ड क्यों नहीं ले जाते।' ऐसा आ सकता है या नहीं आता? लेकिन इन्कमटैक्स का पत्र देखे कि घबरा जाता है।
...उसमें पोस्टमेन का क्या गुनाह? यहाँ तो कितने प्रकार की चिंताएँ, उपाधियाँ, भय, भय और