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आप्तवाणी-७
ऐसे कूदेगा। उस घड़ी कोशिश नहीं करता न? प्रयत्न भी भूल जाता है न? उस घड़ी अपनी शक्ति काम नहीं करती, उस घड़ी अहंकार भी काम नहीं करता। उस घड़ी कोई और ही शक्ति काम करती है! और यदि खुद कर रहा हो तो साँप के ऊपर ही गिर जाए, वह घबराकर साँप पर ही गिर पड़े!
- घबराहट का भय, अब तो टालो __'फेक्ट' वस्तु नहीं जाननी चाहिए? कब तक ये लौकिक बातें जानोगे? अलौकिक को जाने बिना छुटकारा नहीं हो पाएगा, भय नहीं जाएगा! पिछले दिन भूत की बात सुनी हो या किताब में पढ़ने में आई हो और रात को फिर अकेले सोना हो और पास के रूम में प्याला जरा खड़के, भले ही चूहे ने खड़काया हो, लेकिन भीतर क्या होता है? 'भूत घुस गया।' तब अंदर भी भूत घुस जाता है। रात को बारह बजे से भूत घुस जाए तो, जब तक सुबह सात बजे अंदर रसोई में जाकर खुद नहीं देख ले तब तक भय और घबराहट!
फिर अगर यहाँ सुने कि बड़ौदा पर बम गिरनेवाला है, तो उससे पहले तो अंदर घबराहट, घबराहट, घबराहट हो जाएगी! अरे, कहनेवाला क्या त्रिकालज्ञानी है? और वह बम हमें छू सके, ऐसी उसकी हैसियत है? ऐसा है, कि अपने प्रताप से वह बम एक हज़ार मील दूर जाकर गिरेगा! अपने प्रताप से वह बम भी काँपेगा! लेकिन यह तो चिड़िया की तरह फड़फड़ाता है! और यदि हिसाब है तो कुदरत के आगे कुछ भी नहीं चलेगा। हिसाब तो चुकाना ही है न? जब से देह धारण की है, तभी से सारे हिसाब चुकाने तो पड़ेंगे न?
कुदरत निरंतर सहायक, वहाँ डर किसलिए?
चारों तरफ से शांति हो, भय नहीं लगे तो फिर झंझट ही नहीं रहा न? फिर कुछ रहा ही नहीं न! आप तो कुदरत के