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चिंता से मुक्ति ( ५ )
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पराए जंजाल कि चिंता कब तक?
एक मेरे जान-पहचानवाले व्यक्ति थे दूसरे शहर में । उनके यहाँ पर रुका था। उन्होंने मुझ से कहा कि, 'मेरे जीजा जी की तबियत अभी बहुत बिगड़ चुकी है। ज़रा सीरियस हैं । इसलिए मुझे तो पूरे दिन चैन ही नहीं पड़ता। परसों ही उनकी तबियत पूछकर वहाँ से वापस आया हूँ, ' वह ऐसे चिंता - वरीज़ कर रहा था। उसकी यह बात सुनकर मुझे भी चिंता होने लगी, क्योंकि उसकी बहन कम उम्र की थीं और उस समय मुझे 'ज्ञान' नहीं हुआ था। रात को ग्यारह बज गए और बातें करते-करते वह भाई तो खर्राटे लेने लगा ! और उसके जीजा जी की चिंता में मुझे पूरी रात नींद नहीं आई ! यह दुनिया ऐसी है ? उसके जीजा के लिए मैं जाग रहा हूँ, मैं परेशान हो रहा हूँ और यह खर्राटे ले रहा है! फिर मैंने खुद अपने से कहा, 'मैं कहाँ ऐसे बेवकूफ़ बना?" जिसका जीजा बीमार था वह सो गया और मैंने बात सुनी तो मुझ पर असर हो गया ! यह तो हम ही बेवकूफ़ हैं ! तभी से मैं दुनिया को पहचानने लगा कि दुनिया क्या है? फिर मैं समझ गया कि यह जगत् घोटाला है।
हम लोगों को इस तरह से रहना चाहिए कि हमें कर्म नहीं बंधे। इस दुनिया से दूर रहना चाहिए । ऐसे कर्म बाँधे हुए थे, इसीलिए तो ये लोग मिले हैं। ये अपने घर पर कौन इकट्ठे हुए हैं? जिनके साथ कर्म के हिसाब बंधे हुए हैं, वे ही सब लोग इकट्ठे हुए हैं और फिर वे हमें बाँधकर मारते भी हैं ! हमने पक्का किया हो कि मुझे इसके साथ बोलना ही नहीं है, फिर भी सामनेवाला मुँह में उँगली डालकर बुलवाता रहता है । अरे, उँगलियाँ डालकर किसलिए बुलवा रहा है? इसे कहते बैर । सब पूर्व के बैर ! आपने ऐसा बैर कहीं पर देखा है क्या?
प्रश्नकर्ता : सभी जगह यही दिखता है न!