________________
चिंता से मुक्ति (५)
७७
होती है उसका फल क्या है? आगे जाकर जानवर गति मिलेगी, इसलिए सावधान, अभी सावधान होने जैसा है। मनुष्य योनि में हो तब तक सावधान हो जाओ, वर्ना यदि चिंता होगी तो उससे फिर जानवर गति का फल मिलेगा।
चिंता, वह प्योर इगोइज़म है। ये जानवर कोई चिंता नहीं करते और इन मनुष्यों को चिंता? ओहोहो! अनंत जानवर हैं, किसी को चिंता नहीं है और सिर्फ ये मनुष्य ही ऐसे मूर्ख है कि पूरे दिन चिंता में सिकते रहते हैं।
प्रश्नकर्ता : जानवर से भी गए-बीते हैं न ये?
दादाश्री : जानवर तो बहुत अच्छे हैं। जानवरों को भगवान ने आश्रित कहा है। इस जगत् में यदि कोई निराश्रित है तो सिर्फ ये मनुष्य ही हैं और उनमें भी सिर्फ हिन्दुस्तान के ही मनुष्य सौ प्रतिशत निराश्रित हैं। फिर इन्हें दुःख रहेंगे ही न? कि जिसे किसी प्रकार का आसरा ही नहीं! जब कमाए तब कहेगा कि, 'मैंने कमाया।' और नुकसान हुआ तब कहेगा कि, 'भगवान ने नुकसान करवाया,' बल्कि भगवान को भला-बुरा कहता है। भगवान के गुणगान करना तो कहाँ रहा, लेकिन भगवान को भला-बुरा कहने को तैयार! इकलौता बेटा मर जाए तब कहता है, 'भगवान ने मारा।'
और बेटा जन्मा तब पेड़े बाँटते हुए कहता है कि, 'मेरे घर बेटा हुआ है, दो मन पेड़े बाँटेंगे!' यह इगोइज़म ही है न? यदि भगवान की भक्ति करनी हो तो भगवान के गुणगान ठीक तरह से गाने चाहिए या नहीं?
__ खुद अपने आप को पहचानो बात को सिर्फ समझना ही है, आप भी परमात्मा हो। भगवान ही हो, फिर किसलिए वरीज़ करनी? चिंता किसलिए करते हो? यह जगत् एक क्षण भर भी चिंता करने जैसा नहीं है। अब, वह सेफसाइड़ नहीं रह सकेगी, क्योंकि जो सेफसाइड नैचरल थी उसे