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आप्तवाणी-७
दादाश्री : कृष्ण भगवान ने क्या कहा है कि 'जीव तू शीद ने शोचना करे, कृष्ण ने करवू होय ते करे।' ऐसा पढ़ने में आया
है?
प्रश्नकर्ता : मेरा ऐसा मानना है कि इंसान को श्रम तो करना ही चाहिए, देखभाल तो करनी ही चाहिए।
दादाश्री : श्रम तो ज़बरदस्त करो, श्रम तो आप पाँच बजे उठकर करते रहो; लेकिन चिंता-वरीज़ करने की आपको क्या ज़रूरत
है?
प्रश्नकर्ता : घर में चालीस लोग हैं न, इसलिए चिंता तो रहेगी ही न?
दादाश्री : नहीं, लेकिन क्या यह आप चलाते हो? कृष्ण भगवान क्या कहते हैं कि मुझे चलाने दो न! आप क्यों झंझट कर रहे हो?
प्रश्नकर्ता : ऐसा है, घर में मुझे ही सारी मेहनत करनी पड़ती है, बच्चे कुछ नहीं करते। हम बच्चों को श्रम करना सिखलाएँ तो वे ठीक से चलेंगे, लेकिन वे लोग कुछ भी श्रम नहीं करते, कुछ भी काम नहीं करते। जो भी कहें, उससे उल्टा चलते हैं।
दादाश्री : ऐसा है, आपको लगता है कि इस बार के बच्चों की चिंता आपको करनी चाहिए, लेकिन पिछले जन्म के बच्चे थे उनका क्या किया? हर एक जन्म में बच्चे छोड़-छोड़कर आए हैं, जो जन्म पाया, उस जन्म में बच्चे छोड़-छोड़कर ही आया है। वे भी छोटे-छोटे, इतने-इतने, भटक जाएँ ऐसे रखकर आया है। वहाँ से निकलना बिल्कुल भी पसंद नहीं था फिर भी वहाँ से आ गया और बाद में भूल गया और वापस इस जन्म के दूसरे बच्चे! अतः बच्चों के लिए क्यों कलह करते हो? धर्म के रास्ते पर मोड़ दो उन्हें, अच्छे बन जाएँगे।