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आप्तवाणी-७
दादाश्री : इसलिए मैं कह रहा हूँ न, कि वहाँ से हट जाओ और मेरे पास आओ। मैंने जो यह प्राप्त किया है वह आपको दे दूँ। आपका काम हो जाएगा और छुटकारा हो जाएगा। वर्ना छुटकारा होगा नहीं।
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हम किसी का दोष नहीं निकालते । लेकिन नोट करते हैं कि देखो यह दुनिया क्या है? सब तरह से यह दुनिया मैंने देखी हुई है, बहुत प्रकार से देखी हुई है। कुछ लोग तो व्यापार की चिंता करते ही रहते हैं, वे लोग चिंता क्यों करते हैं? मन में ऐसा लगता है कि, 'मैं ही चला रहा हूँ' इसलिए चिंता होती है। ' इसे चलानेवाला कौन है' ऐसा कोई साधारण भी, किसी भी प्रकार का अवलंबन नहीं लेता। भले ही, तू ज्ञान नहीं जानता, लेकिन किसी भी प्रकार का दूसरा कोई अवलंबन तो ले, क्योंकि तुझे ऐसा कुछ अनुभव हो चुका है कि तू नहीं चला रहा है। चिंता, वह सबसे बड़ा इगोइज़म है।
यह छोटी सी बात आपको बता देता हूँ, यह सूक्ष्म बात आपको बता देता हूँ कि 'इस वर्ल्ड में कोई भी इंसान ऐसा नहीं जन्मा है कि जिसकी खुद की संडास जाने की भी स्वतंत्र शक्ति हो !' तो फिर इन लोगों को इगोइज़म करने का क्या अर्थ है ? यह कोई और ही शक्ति काम कर रही है। अब वह शक्ति अपनी नहीं है, वह परशक्ति है और स्वशक्ति को जानता नहीं, इसलिए खुद भी परशक्ति के अधीन है, और सिर्फ अधीन ही नहीं, लेकिन पराधीन भी है, पूरा जीवन ही पराधीन है।
खुद की सत्ता में नहीं है, वैसी कल्पना मत करना। पिछले जन्म की दो-तीन छोटी बेटियाँ थीं, बेटे थे, उन सब को इतनेइतने छोटे-छोटे रखकर आए थे, तो उन सबकी कुछ चिंता करते हो ? क्यों? और यों मरते समय तो बहुत चिंता होती है न, कि छोटी बेटी का क्या होगा? लेकिन यहाँ पर फिर से नया जन्म लेता है, तब पहले की कोई चिंता रहती ही नहीं न! चिट्ठी