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आप्तवाणी-७
दादाश्री : किसी के लिए क्यों झंझट करते हो? आपको किसी दिन हुआ है?
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प्रश्नकर्ता नहीं। :
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दादाश्री : नहाने के लिए गरम पानी मिलेगा या नहीं मिलेगा, मिलेगा या नहीं मिलेगा, ऐसा सोचते रहो रात से सुबह तक, तो ऐसा जाप करने की ज़रूरत पड़ती है? फिर भी सुबह नहाने को गरम पानी मिलता है या नहीं मिलता ?
प्रश्नकर्ता : मिलता है ।
दादाश्री : ऐसा है, कि जो नेसेसिटी है, वह नेसेसिटी अपने टाइम पर आती ही है । उसका ध्यान करने की ज़रूरत नहीं है । इसीलिए तो कहा है न, कि लक्ष्मी तो हाथ का मैल है। जैसे पसीना आए बगैर नहीं रहता, वैसे ही लक्ष्मी भी आए बगैर नहीं रहती। जैसे किसी को पसीना अधिक आता है, उसी तरह लक्ष्मी भी अधिक आती है । और जैसे किसी को पसीना कम आता है, उसी तरह लक्ष्मी भी कम आती है। बात तो समझनी पड़ेगी न?
लक्ष्मी, दान देने से बढ़े अपार
लक्ष्मी तो, कभी भी कम नहीं पड़े, उसका नाम लक्ष्मी ! फावड़े से खोद-खोदकर धर्मदान करता रहे न, फिर भी कमी न पड़े, वह लक्ष्मी कहलाती है। यह तो धर्मदान करे, तो बारह महीने में दो दिन देता है, उसे लक्ष्मी कहेंगे ही नहीं । एक दानवीर सेठ थे, अब दानवीर नाम कैसे पड़ा? कि उनके वहाँ सात पीढ़ियों से धन था। वे फावड़े से खोद-खोदकर देते ही रहते थे। सात पीढ़ियों से धन देते ही रहते थे, फावडे से खोदकर ही देते थे। वे जो भी आए उसे, आज फलाना आया कि 'मेरी बेटी की शादी करवानी है,' तो उसे दे दिए। कोई ब्राह्मण आया, उसे दे दिया। किसी को दो हज़ार की ज़रूरत है, उसे दे दिए। साधुसंतों के लिए वहाँ पर जगह बनवाई थी । वहाँ पर सभी साधु