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लक्ष्मी की चिंतना (२)
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तो बहुत हो गया! भराव हो तो बहुत उपाधि होती है, फिर बैंक में रखना वगैरह सारी उपाधि। फिर साला आएगा कि, 'आपके पास तो बहुत सारे रुपये हैं, तो दस-बीस हज़ार दीजिए।' फिर मामा का बेटा आएगा, फिर जमाई आएगा कि 'मुझे लाखेक रुपया दीजिए।' अगर भराव हो तब कहते रहेंगे न? लेकिन भराव ही नहीं होगा तो? पैसों का भराव होने के बाद लोगों में कलह होती है।
लोग आकर मुझ से कह जाते हैं कि 'देखिए न, हमारे जमाई आए, वे लाख रुपये माँग रहे हैं। जमाई तो इसके लिए आ गए हैं, सभी को देता रहूँ तो मेरे पास क्या रहेगा?' उसकी बात भी सही है। सभी को देता रहे तो उसके पास कुछ रहेगा नहीं न! यानी कि भराव हो गया तभी लेने आ गए न! अब वहाँ पर उनके साथ जमाई झगड़ा करता है, गालियाँ देता है! तब अंत में कहेगा, 'मेरे पास अधिक पैसे नहीं हैं। लो, ये बीस हज़ार ले जाओ और अब वापस मत आना।' अरे, देने थे तब कलह करके दिए, उसके बजाय तो समझाकर देने थे न! नहीं तो एक बार झूठ बोल दे कि, 'ये सब लोग कहते हैं कि मेरे पास दस लाख आए हैं, लेकिन मेरा मन जानता है कि कितने आए हैं, मुश्किल से डेढ़ लाख आए हैं।' ऐसा-वैसा करके झूठ बोलकर भी जमाई को समझा देना चाहिए, ताकि लड़ाई तो नहीं हो, झगड़ा भी नहीं हो लेकिन ऐसा करना आता नहीं है न! और फिर वह जमाई तो लाख के लिए पीछे पड़ता है, बीस हज़ार नहीं लेता। यानी कि ये रुपये अधिक आ जाएँ तो फिर भाई के साथ लड़ता है, साले के साथ लड़ता है, जमाई के साथ लड़ता है। अधिक रुपये आ जाएँ, तो उसकी सभी के साथ लड़ाई होती है और नहीं होते, तब सभी एकसाथ बैठकर खाते-पीते हैं और मज़े करते हैं। ऐसा है इन पैसों का काम। इसलिए भराव हो जाए तो वह भी उपाधि है जबकि कमी नहीं पड़े तो बहुत हो गया।
इस शरीर में भी जब कमी पड़े तब मनुष्य कमज़ोर हो