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उलझन में भी शांति !
उलझनों में जीवन, कितनी मुश्किल? कोई बात पूछो कुछ ! कब तक इस उलझन में पड़े रहोगे ? प्रश्नकर्ता: अभी तो कोई उलझन नहीं है।
दादाश्री : वह तो अभी ऐसा लग रहा है। वर्ना, भोजन के समय टेबल पर मतभेद हो जाए न, तो झंझट हो जाती है। बात-बात में उलझनें ही हैं, एक-एक शब्द पर सिर्फ उलझन है । जितनी उलझन नहीं लगती, उतनी बेशुद्धि है, नहीं तो एक क्षणभर भी सहन नहीं हो, ऐसा यह संसार है। हमें तो यह संसार एक क्षण के लिए भी सहन नहीं होता था । किसी रात मैं सोया ही नहीं था इतना अधिक अपार दुःख रहता था !
आसपास के सभी लोगों से पूछें कि, 'ये सुखी हैं या दुःखी?' तब सभी कहेंगे कि, 'ये तो बहुत सुखी हैं।' जबकि मुझे खुद को बहुत दुःख महसूस होता था, क्योंकि अज्ञानता में था। यों हर एक बात में भान आ चुका था, लेकिन अज्ञानता थी । बोलो, दोनों तरफ की दशा, अब क्या हो ? यहाँ उजाला हो और जिसने ऐसा देख लिया कि साँप घुस गया है तो उसकी क्या दशा होगी? जिसने नहीं देखा, वह सो जाएगा लेकिन जिसने देखा हो, वह ? उसे फिर नींद ही नहीं आएगी। फिर भी इस संसार में किस तरह जीते हैं, वही आश्चर्य है !
घर जाएँ तो पत्नी की झिड़की खानी पड़ती है, व्यापार में