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आप्तवाणी-७
का हमारा सारा स्वाद बिगड़ जाएगा।' 'तब बेटी की शादी का किसलिए याद कर रहा है? उससे भी तेरा स्वाद चला जाएगा न? और बेटी अपनी शादी का सबकुछ लेकर ही आई है। माँबाप तो इसमें निमित्त ही हैं।' बेटी अपनी शादी का, सबकुछ ही साधन लेकर आई है। बैंक बैलेन्स, पैसा वगैरह सबकुछ लेकर आई है। ज्यादा या कम, जितना भी खर्चा होगा, वह एक्ज़ेक्टली सबकुछ लेकर ही आई है। यह तो सिर्फ इतना ही है कि सब बाप को सौंपा हआ है! इसलिए वरीज़ करने जैसा यह जगत् है ही नहीं। एक्जेक्टली देखने जाएँ तो यह जगत् बिल्कुल वरीज़ करने जैसा है ही नहीं, था भी नहीं और होगा भी नहीं।
बेटी अपना हिसाब लेकर आई है। बेटी की वरीज़ आपको नहीं करनी हैं। बेटी के आप पालक हो। बेटी अपने लिए लड़का भी लेकर आई है। हमें किसी से कहने नहीं जाना पड़ता कि 'बेटा पैदा करना। हमारी बेटी है उसके लिए बेटा पैदा करना,' क्या ऐसा कहने जाना पड़ता है? यानी कि सब सामान तैयार लेकर आई है? जबकि बाप कहेगा, 'यह पच्चीस साल की हो गई, अभी तक इसका ठिकाना नहीं पड़ा। ऐसा है, वैसा है।' वह सारे दिन गाता रहता है। 'अरे, वहाँ पर बेटा सत्ताइस साल का हो गया है, लेकिन तुझे मिल नहीं रहा है, तो शिकायत क्यों कर रहा है? सो जा न चुपचाप! वह बेटी अपना टाइमिंग वगैरह सबकुछ सेट करके लाई है।'
कुछ लोग तो अभी बेटी तीन वर्ष की हो तभी से चिंता करते हैं कि, 'जाति में खर्चा बहुत है, किस तरह करूँगा?' वे शिकायत करते रहते हैं। यह तो सिर्फ इगोइज़म करते रहते हैं। क्यों बेटी की चिंता करता रहता है? शादी के समय पर बेटी की शादी हो जाएगी। संडास संडास के टाइम पर होगी, भूख भूख के टाइम पर लगेगी, नींद नींद के टाइम पर आएगी। तू क्यों किसी भी चीज़ की चिंता कर रहा है? नींद अपना टाइम लेकर