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आप्तवाणी-७
मालिक होने जाएँ तो फिर मोक्ष में कैसे जाएँगे? अतः वह संपत्ति तो स्वप्न में भी नहीं हो।
प्रश्नकर्ता : मोक्ष में क्यों नहीं जाने देगी?
दादाश्री : मोक्ष में कैसे जाने देगी? ये चक्रवर्ती राजा सारा चक्रवर्तीराज्य छोड़ देने पर मोक्ष में जा पाते हैं, नहीं तो चित्त उसी सब में उलझा रहेगा। उन दिनों क्या अक्रमविज्ञान था? क्रमिकमार्ग था। यह तो अक्रमविज्ञान है, इसलिए आराम से ज्ञान को सेट करके सो जाता है और पूरी रात भीतर समाधि रहती
च सब में उस तो अक्रमावारी रात
प्रश्नकर्ता : आपने कहा था न, कि अच्छे खानदान में जन्म हुआ हो तो सबकुछ लेकर ही आया होता है इसलिए अधिक झंझट करने की ज़रूरत नहीं रही, ऐसा है न?
दादाश्री : हाँ, सबकुछ लेकर ही आया होता है, लेकिन वह व्यवहार चलाने जितना ही, खुद का सबकुछ चले उतना ही। वर्ना करोड़ाधिपति तो शायद ही कोई बनता है।
प्रश्नकर्ता : चक्रवर्ती राजा भी अंत में मोक्ष में जाने को ही अधिक इम्पोर्टन्ट मानते थे न? महत्वपूर्ण तो मोक्ष ही है। चक्रवर्ती होने में भी सुख नहीं है न? ।
दादाश्री : 'महत्वपूर्ण तो मोक्ष ही है,' उन्हें ऐसा नहीं था, लेकिन वह चक्रवर्ती का पद उन्हें इतना अधिक काटता था कि उन्हें होता था कि 'कहाँ भाग जाऊँ?' इसलिए मोक्ष याद आता था! कोई कितना अधिक पुण्यशाली हो तो चक्रवर्ती बनता है, लेकिन भाव तो मोक्ष में जाना है ऐसा ही होता है। बाकी पुण्य तो सब भोगने ही पड़ेंगे न!
प्रश्नकर्ता : इतने सारे जन्मों में यह सब भोगा, राजा बने, फिर भी इच्छाएँ बाकी रह जाती हैं, उसका क्या कारण होगा?