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जागृति, जंजाली जीवन में... (१)
और तीन बड़े संडास दिखाए ! मुझे फ्लेट दिखाने ले गए थे कि 'आईए, मेरे घर पर आईए । चाय पीकर जाइए।' तो हम वहाँ गए थे। जैसे स्मशान रूम में बैठे हों न, वैसा लग रहा था, कुछ ठंडक ही नहीं लगे !
'मेरे लिए हितकारी क्या है' इतना तो सोचना चाहिए न? कि विवाह किया उस दिन का आनंद याद करें तो हितकारी है। या वैधव्य आया उस दिन का शोक याद करें तो हितकारी है ? विवाह किया उस दिन का आनंद याद करें तो वह अपने लिए हितकारी है। वैधव्य के शोक का क्या करना है? दो जन विवाह करने बैठते हैं तभी से दोनों में से एक को तो वैधव्य भोगना ही है। यह विवाह करने का सौदा ही ऐसा किया है और उसमें फिर क्या कलह? जहाँ पर सौदा ही ऐसा हो, वहाँ पर कलह होती होगी? दोनों में से एक वैधव्य नहीं भोगेगा?
जो सुगंध फैलाए, वास्तव में वही जीवन
इज़्ज़तदार तो किसे कहते हैं कि जिसकी सुगंध आए। ये तो ढँकते फिरते हैं। यों तो काला बाज़ारी करते हैं और फिर ढँकते रहते हैं। झूठ बोलते हैं, लुच्चाई करते हैं, हरामखोरी करते हैं, फिर भी ढँकते रहते हैं । ये मिलावट नहीं करते अभी? और फिर हम कहें कि मिलावट करनी चाहिए या नहीं?' तो कहेंगे कि, ‘नहीं करनी चाहिए ।' अरे, तू मिलावट करके आया है और फिर कहता है कि नहीं करनी चाहिए? यह किस प्रकार का ज्ञान है ? लेकिन इसमें उसका दोष नहीं है, उसके साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स बदले हैं।
उसमें उसके सामने चूड़ियाँ रखें तो वह क्या करेगा? जैसे न जाने कितनी इज़्ज़त चली गई! और घर पर पत्नी झिड़कती रहती है। घर पर पत्नी झिड़कती है या नहीं झिड़कती ? जमाना क्या ऐसा नहीं है? जानते हो, कैसे झिड़कती है ? 'आज खाना नहीं दूँगी,' ऐसा भी कहती है। वह फिर बाहर किसी से कह