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जागृति, जंजाली जीवन में... (१)
ही बरकत नहीं है और लोगों को बदलने निकले हैं ये लोग! यह तो एक प्रकार का व्यापार लेकर बैठे हैं। फिर भी, शराब पीए, मांसाहार करे और उल्टे रास्ते पर चला जाए उससे तो यह अच्छा है!
अपने हिन्दुस्तान के एक-एक मनुष्य में कितनी अधिक शक्ति है? ज़बरदस्त शक्तियाँ हैं, भीतर अनंत शक्ति है! लेकिन अगर 'ज्ञानीपुरुष' से भेंट हो जाए तो वे शक्ति को व्यक्त कर देंगे। अर्थात् शक्ति तो उसमें भरी हुई हैं सारी, लेकिन अप्रकट रहती है और ऐसे करते-करते बूढ़े हो जाते हैं और अंतिम स्टेशन तक पहुँच जाते हैं। ऐसा मनुष्य जन्म भी देखो बिना काम के बेकार चला जाता है! बहुत बुद्धिशाली को भी एक दिन बुद्धू होना पड़ेगा। यानी बुद्धि की भी नॉर्मेलिटी ही अच्छी।
नकलों में जाने क्या ही मान बैठे! नया पेन्ट पहनकर दर्पण में देखता रहता है। 'अरे, दर्पण में क्या देख रहा है?' यह किसकी नकल कर रहा है, वह तो देखो! अध्यात्मवाले की नकल की या भौतिकवाले की नकल की? यदि भौतिकवाले की नकल करनी हो तो वे अफ्रीकावाले हैं, उनकी क्यों नहीं करते? लेकिन ये तो साहब जैसे लगने के लिए नकलें की, लेकिन तुझमें बरकत तो है नहीं! किसलिए 'साहब' बनने को फिरता है? लेकिन साहब बनने के लिए ऐसे यों दर्पण में देखता है, बाल जमाता रहता है। और खुद मानता है कि अब
ऑलराइट हो गया हूँ। फिर पतलून पहनकर ऐसे पीछे हथेलियाँ मारता रहता है। अरे, किसलिए बिना काम के मारता रहता है? कोई बाप भी देखनेवाला नहीं है। सभी अपने-अपने काम में पड़े हुए हैं। अपनी-अपनी चिंता में पड़े हुए हैं। तुझे देखने के लिए कौन फालतू है? सभी अपनी-अपनी झंझट में पड़े हुए हैं। लेकिन खुद अपने आपको न जाने क्या ही मान बैठा है! मन में मानता है कि यह तीन सौ रुपये मीटर का कपड़ा है, इसलिए लोग