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लक्ष्मी की चिंतना (२)
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ले जाने होते न, तो बनिये तो बहुत अक़्लवाले लोग! लेकिन अपनी जाति में पूछकर देखो, कोई ले गया है? मुझे लगता है कि अंटी में डालकर ले जाते होंगे? यदि ये पैसे साथ में ले जाए जा सकते तो हम उसका ध्यान भी करें। लेकिन वे साथ में नहीं ले जाने
हैं
न?
प्रश्नकर्ता : तो फिर मनुष्य मात्र की पैसे इकट्ठा करने की प्रबल वृत्ति क्यों रहती होगी?
दादाश्री : वह तो लोगों का देखकर करते रहते हैं। 'यह ऐसा करता है और मैं रह गया' ऐसा उसे होता रहता है। दूसरा, उसके मन में ऐसा रहता है कि पैसा होगा तो सबकुछ लाया जा सकेगा, पैसों से सबकुछ मिलता है। लेकिन दूसरा नियम वह नहीं जानता कि पैसे किस आधार पर आते हैं! जैसे शरीर की तंदुरस्ती हो तब नींद आती है, उसी तरह जब मन की ऐसी तंदुरस्ती हो तो लक्ष्मी जी आती हैं।
प्रश्नकर्ता : फिर भी अभी तो मोक्ष किसी को भी नहीं चाहिए, सिर्फ पैसा चाहिए।
दादाश्री : इसीलिए तो भगवान ने कहा है न, कि ये प्राणियों की मौत मर रहे हैं। कुत्ते, गधे, जिस तरह प्राणी मरते हैं न, वैसे ये लोग मर जाते हैं, बेमौत मरते हैं। हाय पैसा! हाय पैसा! करते-करते मरते हैं! पैसे का तो याद आना भी बहुत बड़ा जोखिम है, तब फिर पैसे की भजना करने में कितना अधिक जोखिम होगा? मैं क्या कहना चाहता हूँ, वह आपको समझ में आता है?
प्रश्नकर्ता : वह समझ में आया, लेकिन उसमें जोखिम क्या है वह समझ में नहीं आया। उसमें तो तुरंत ही, तात्कालिक लाभ होता है न! पैसा हो तो सभी चीजें मिलती हैं। ठाठ-बाट, मोटरबंगला सबकुछ प्राप्त होता है न?
दादाश्री : लेकिन क्या कोई पैसे की उपासना करता होगा?