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आप्तवाणी-७
जितना हिसाब है उतना ही रहेगा। अगर आधी पतीली दूध हो, उसके नीचे लकड़ी जलाई और दूध की पतीली ऊपर रखी तो दूध पूरी पतीली हो जाता है न? उफनने से पूरी पतीली भर जाती है, लेकिन क्या वह भरा हुआ टिकता है? वह उफना हुआ टिकता नहीं है। यानी जितना हिसाब है उतनी ही लक्ष्मी रहेगी। यानी कि लक्ष्मी तो अपने आप ही आती रहती है। मैं ज्ञानी हुआ हूँ, मुझे संसार संबंधी विचार ही नहीं आता, फिर भी लक्ष्मी आती रहती है न! आपके पास भी अपने आप ही आती है, लेकिन आप काम करने के लिए बाध्य हो। आपके लिए कर्तव्यरूप क्या है? वर्क (काम) है।
लक्ष्मी तो बाइ प्रोडक्ट है। जैसे कि 'अपना हाथ अच्छा रहेगा या पैर अच्छा रहेगा,' उसके लिए रात-दिन सोचना पड़ता है क्या? नहीं। क्यों? क्या हाथ-पैरों की हमें ज़रूरत नहीं है? है, लेकिन उसके लिए सोचना नहीं पड़ता। उसी प्रकार लक्ष्मी के लिए भी नहीं सोचना है। वह भी जैसे हमें यहाँ से हाथ दुःख रहा हो तो उसे ठीक करने के लिए सोचना पड़ता है, उसी प्रकार लक्ष्मी के लिए कभी सोचना पड़े तो वह भी उस समय के लिए ही, फिर सोचना ही नहीं, दूसरे झंझट में नहीं उतरना। लक्ष्मी के स्वतंत्र ध्यान में जाना चाहिए? यदि एक तरफ लक्ष्मी का ध्यान है, तो दूसरी तरफ दूसरा ध्यान चूक जाते हैं। स्वतंत्र ध्यान में लक्ष्मी तो क्या, स्त्री के ध्यान में भी नहीं जाना चाहिए। स्त्री के ध्यान में जाएगा तो स्त्री जैसा हो जाएगा। लक्ष्मी के ध्यान में जाएगा तो चंचल हो जाएगा। लक्ष्मी चलायमान और वह भी चलायमान! लक्ष्मी तो सब ओर घूमती ही रहती है निरंतर, उसी तरह वह भी सब
ओर घूमता रहेगा। लक्ष्मी का तो ध्यान ही नहीं करना चाहिए। सबसे बड़ा रौद्रध्यान है वह तो। वह आर्तध्यान नहीं रौद्रध्यान है। क्योंकि खुद के घर पर खाने-पीने का है, सबकुछ है लेकिन अभी तक अधिक लक्ष्मी जी की आशा रखता है, यानी उतनी ही दूसरे के वहाँ कमी हो जाती है। दूसरे के वहाँ कमी हो जाए, वैसा