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आप्तवाणी-७
कोई सोल्व नहीं कर सकता है कि ऐसा क्यों होता होगा? इसीलिए इन्डियन पज़ल कहा है न!
जिसकी मात्रा नक्की, उसकी चिंतना कैसी?
पैसे तो जितने आने होंगे उतने ही आएँगे। धर्म में पड़ेगा तो भी उतने ही आएँगे और अधर्म में पड़ेगा तो भी उतने ही आएँगे। लेकिन अधर्म में पड़ेगा तो दुरुपयोग होगा और दु:खी होगा।
और धर्म में सदुपयोग होगा तो सुखी होगा और मोक्ष में जा पाएगा, वह अलग। वर्ना पैसे तो उतने ही आनेवाले हैं।
पैसों के लिए विचार करना, वह एक बुरी आदत है। वह बुरी आदत कैसी है? एक मनुष्य को बहुत बुखार चढ़ जाए और हम उसे भाप देकर बुख़ार उतारें। भाप दी तो उसे पसीना बहुत आ जाता है, ऐसे फिर वे रोज़ भाप दे-देकर पसीना निकालते रहे तो, उसकी स्थिति क्या होगी? वह ऐसा समझेगा कि इसी तरह एक दिन मुझे बहुत फायदा हुआ था, मेरा शरीर हल्का हो गया था, तो अब यह रोज़ की आदत रखनी है। रोज़ भाप ले और पसीना निकालता रहे तो क्या होगा?
प्रश्नकर्ता : शरीर में से सभी पानी निकल जाएगा।
दादाश्री : फिर लकड़ी जैसा हो जाएगा, जैसे इस प्याज़ को सुखाते हैं न? वैसा ही है ये, लक्ष्मी की चिंतना करना. वह उसके जैसा है। जैसे यह पसीना सही मात्रा में ही निकलता है, उसी तरह लक्ष्मी सही मात्रा में आती ही रहती है। आपको अपना काम करते जाना है। काम में गाफ़िल मत रहना। लक्ष्मी तो आती ही रहेगी। लक्ष्मी के विचार मत करना कि 'इतनी आओ और उतनी आओ,' या 'फिर आए तो अच्छा,' ऐसा कुछ भी नहीं सोचना है। इससे तो लक्ष्मी जी को बहुत गुस्सा आता है। मुझे लक्ष्मी जी रोज़ मिलती हैं, तब मैं उनसे पूछता हूँ कि, 'आप क्यों नाराज़ हैं?' तब लक्ष्मी जी कहती हैं कि, "ये लोग अब ऐसे हो गए